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[कल्याण-कलिका-प्रथभखाण्डे लत्ता नित्य मरणनो निर्देश करे छे, चन्द्रनी लत्ता कार्यनो नाश करे, बुधनी लत्ता पण कार्य नाशनी सूचक छे, शनिनी लत्ता मरणने कहे छे, बृहस्पतिनी लसा बंधु-कुटुंबिओना नाशने सूचवे छे, राहुनी लत्ता मरणकारक छ ज्यारे शुक्रनी लत्ता कार्यनो विनाश कहेनारी छे.
लत्तानो परिहारसौराष्ट्र साल्वदेशेषु, लातितं भं विवर्जयेत् ।
भा०टी०-सौराष्ट्र (काठियावाड) अने साल्व (राजस्थान) मा लात वडे हणायेल नक्षत्र वर्जवं जोइये.
लत्ता मालवके देशे' 'एटले लत्ता दोष मालवा देशमा वर्जवो' विवाह पटलनु ए वचन पण लत्तानो अपवाद सूचवे छे.
पातदोषरविभादहिपितृ मित्र, स्वाष्ट्रभहरिपौष्णभेषु गणितेषु । आश्विन भादीन्दुयुतौ, तावति वैपतति गणनया पातः॥३३१॥
भा०टी०-सूर्य नक्षत्रथी आश्लेषा १ मघा २ अनुराधा ३ चित्रा ४ श्रवण ५ रेवती ६ आ छ नक्षत्रो गणवां जे जे संख्या आश्लेषा आदिनी आवे तेटली तेटली संख्यामां अश्विनीथी गणतां जे चंद्र नक्षत्र होय ते उपर पात छे एम जाणवू-उदाहरणरुपे सूर्य भरणी नक्षत्र उपर छे, तेथी आश्लेषा ८ मुं, मघा ९ मुं, चित्रा १३ मुं अनुराधा १६ मुं, श्रवण २१ मुं अने रेवती २६ मुं नक्षत्र छे माटे अश्विनीथी ८, ९, १३, १६, २१, २६, आ संख्याना नक्षत्र उपर चन्द्र होय तो ते नक्षत्र पातवालु होइ शुभ कार्यमां वर्जित करवू.
पातने सुगमताथी जाणवानो उपाय नीचे प्रमाणे छेपातं शूलस्य गण्डस्य, हर्षण-व्यतिपातयोः। साध्यवैधृतयोश्चान्ते, धिष्ण्यं यत्तत्र वर्जयेत् ॥३३२॥
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