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[ कल्याण-कलिका-प्रथभखण्डे रेवती-शाक्र-सार्वान्ते-मास-शक्र-शिवास्त्यजेत् ॥२८७॥
भाटो०---अश्विनी ३ मघा ४ अने मूलनी ९ आदिनी अने रेवती आश्लेषा ज्येष्ठाना अन्तनी अनुक्रमे १२-१४-११ घडीओनो गण्डान्त तरीके त्याग करवो।
आ विषे राजमार्तण्डन कथन-- यामं यवनाधिपति-स्तदर्धभागं च भागुरिः प्राह । दण्डप्रमितं गण्ड, पूर्वापरतोऽगिरामीशः ॥२८८॥
भा०टी०-यवनाचार्य १ प्रहरपरिमित नक्षत्र गण्डान्त माने छ, भागुरि ऋषि अर्ध प्रहर प्रमाण नक्षत्र गण्डान्त माने छे, ज्यारे बृहस्पति १ घडी नक्षत्रान्तनी अने १ घडी नक्षात्रादिनी गण्डान्त रूपे त्याज्य गणे छे.
___ गण्डान्त विषे आरंभसिद्धिगण्डान्तं च त्यजेत् त्रेधा, लग्नेतिथ्युडुषु त्रिषु । प्रत्येकं त्रित्रिभागान्तर-धैंकद्विघटीमितम् ॥२८९॥
भाण्टी--लग्न, तिथि, नक्षत्र, आ त्रणेना त्रीजा वीजा भागने आंत अनुक्रमे अर्ध घटी, एक घटी, अने बे घडी प्रमाणनो समय गण्डान्त होय छे, त्रणे प्रकारना गण्डान्तने शुभ कार्यमा त्यागवो, भावार्थ ए छे के १२ लग्नोनो, १५ तिथिओनो अने २७ नक्षत्रोनो श्रीनो त्रीजो भाग अनुक्रमे ४ लग्नो, ५ तिथिओ अने ५ नक्षत्रोनो याय छे, कर्क ने सिंह वृश्चिक ने धन, मीन ने मेष वच्चेनी अर्धी घडी लग्न गण्डान्त छ, पांचम ने छट्ट, दशम ने अग्यारस, पूनम ने एकम बच्चेनी १ घडी तिथि गण्डान्त अने आश्लेपा ने मघा, ज्येष्ठा ने मूल रेवती ने अश्विनी वच्चेनी बे घडीओ नक्षत्र गण्डान्त , जे शुभ कार्यमा अवश्य त्याज्य छ।
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