Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 548
________________ नक्षत्र-लक्षणम्] हतमुल्कोपरागाभ्यां, स्वभावान्यत्वमागतम् ॥३२०॥ पीडिते जन्मभे मृत्युः, कर्मनाशश्च कर्मणि । संघाते मृत्युपीडा स्यात्, सामुदाये सुखक्षयः ॥३२॥ वैनाशिके देहनाशो, मनस्तापस्तु मानसे। कुलदेशधियां नाशो, जाति देशाभिषेक भे ॥३२२।। भाण्टी०-केतु, सूर्य, शनि युक्त होय के भौमना वक्रवडे अथवा भेद वडे दृषित होय, उल्का के प्रहणथी हणायेल होय, स्वभावथी ज वियर्यास पामेल होय ते नक्षत्र पीडित गणाय छे, जन्म नक्षत्र पीडित थतां मृत्यु थाय, कर्म नक्षत्र पीडित थता कर्मनो नाश थाय छे, संघात नक्षत्र पीडित थतां मरण पीडा थाय, सामुदाय नक्षत्र पीडित थतां सुखनो क्षय थाय, वैनाशिक नक्षत्र पीडित थाय त्यारे देहनो नाश थाय, मानस पीडित थतां मन संताप, अने जाति, देश अभिषेक नक्षत्रो पीडित थवाथी अनुक्रमे कुल, देश, तथा लक्ष्मीनो नाश थाय छे. लत्तादोष श्रीपतिः ऋक्षं द्वादशमुष्ण रश्मिरवनीसूनुस्तृतीयं गुरु:, षष्ठं चाष्टममर्कजश्च पुरतो हन्ति स्फुटं लत्तया । पश्चात्सप्तममिन्दुजश्च नवमं राहुः सितः पञ्चमं, द्वाविंशं परिपूर्णमूर्तिण्डुपः संताडयेन्नेतरः ॥३२३॥ भोष्टी०-सूर्य पोतानी आगेर्नु १२ मुं, मंगल ३ जु, गुरु ६ टुं अने शनि ८ मुं नक्षत्र लातवडे हणे छे, ज्यारे बुध पाछलनु ७ मुं राहु ९ मुं, शुक्र ५ मुं अने पूर्णिमानो चन्द्र २२ मुं नक्षत्र लत्तावडे ताडित करे छे, पूर्णिमानो चन्द्र ज नक्षत्रने लत्तावडे ताडन करे छे बीजी तिथिनो चंद्र नहि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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