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मुहूर्त-लक्षणम् ] भाद्रवह आसो कार्तिक दइताणुं उत्तर राहु करइ पियाणुं ॥२॥ कमठ देउल आराम विहार, संमुख राहु न कीजइ बार ।। संमुख राहु जइमंदिर थप्पड़,मरइ कलत्र का निर्धनअप्पाइ॥३॥
आ प्राचीन भाषापद्योमा मागसर आदिथी पूर्वादिमा राहु भ्रमण जणाव्युं छे. ज्यारे “ मीनादित्रयमादित्यो" आ संस्कृत 'लोकमां "धन्वादित्रितये राहुः" आ वाक्यथी मीन, मिथुन कन्यादि ३-३ गशिना सूर्यमां सृष्टिक्रमथी पूर्वादि दिशाओमां गहनो निवास जणाव्यो छ, आ बंने कथन- तात्पर्य एक ज छे, प्रथम कथन अमान्त महीनानी अपेक्षावालुं छे ज्यारे बीजुं विधान सौर मासनी अपेक्षावालं छे.
धनु
मकर कुंभ
मीन
कन्या तुला वृश्चिक
उत्तरे
दक्षिण
मेष • वृषभ
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