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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे रामदैवज्ञ सुधीना प्राचीन अर्वाचीन कोइ विद्वान ज्योतिषीए पोताना ग्रन्थमां आ उद्वेगादि अर्धपहरोनो नामनिर्देश सुद्धा कर्यो नथी. अमारी मान्यता प्रमाणे जुना ग्रन्थो पैकीना कोई ग्रन्थे आ चोघडियानुं नाम निर्देश्यु होय तो तेशूरमहाठशिवराज संग्रहीत ‘ज्योतिर्निबन्ध' छे. आ ग्रन्थना वार प्रकरणना अन्तमां नीचे प्रमाणे लोक दृष्टिगोचर थाय छेउद्वेगाऽमृतनामा च, रोगा लाभा शुभा बला। कलिर्नामानि वेलानां, होरावत् सूर्यतः क्रमात् ॥१५८॥
भा०टी०-उद्वेगा, अमृता, रोगा, लाभा, शुभा, बल अने कलि आ सूर्यादि ७ वारोनी वेलानां नामो छे. आ वेलाओ गणवानो क्रम होराओनी जेम जाणवो. उक्त श्लोक पहेला २ पद्योमां अर्धयाम, कुलिक, कंटक अने जीवकुलिक (उपकुलिक ) नुं वर्णन छे. आ पद्योना प्रारंभमां एना कर्ता तरीके 'भूपाल:-' नाम निर्देश छे, आथी जणाय छे के आ बंने पद्यो 'भूपालवल्लभ' ग्रन्थना छ, पण ए पछीनो 'उद्वेगाऽमृतनामा च' आ श्लोक के जे वार प्रकरणनो छेल्लो छे, भूपालनोज छे के कोई लेखकनो प्रक्षेप छे ए कहेवू कठिन छे, रोगा, लाभा, बला, ए शब्दो जणावे छे के आ श्लोक ' भूपालवल्लभ' जेवा ग्रन्थनो भाग्ये ज होय, विद्वान् ज्योतिषीओ ए आ चोघडियाओना संबन्धमा उहापोह करवो जोइये, आ चोघडियाओनी गणनाए लोको शुभ समय जाणी कोइ कार्य करे छे अने ते समय अर्धयाम, कालवेलादि अनेक अशुभ योगोथी दूषित होवाथी कार्य निष्फल जाय छ, उदाहरण रूपे रविवारे पहेलु उद्वेग' अने वीजें 'चल' गणी बंने चोघडियां जतां करे छे अने त्रीजु 'लाभ' अने चोथु 'अमृत' चोघडियुं जाणी तेमां शुभ कार्य आरंभे छे, खरी रीते रविवारनां पहेलुं बीजं आ बंने चोघडियां निर्दोष छे ज्यारे त्रीजामा 'कंटक'
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