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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे रोहिणीनी ४० मृगशिरनी १४ आर्दानी २१ पुनर्वसुनी ३० पुष्यनी २० आश्लेषानी ३२ मघानी ३० पूर्वा फाल्गुनीनी २० उत्तराफाल्गुनी १८ हस्तनी २१ चित्रानी २० स्वातिनी १४ विशाखानी १४ अनुराधानी १० ज्येष्ठानी १४ मूलनी ५६ पूर्वाषाढानी २४ उत्तराषाढानी २० श्रवणनी १० धनिष्ठानी १० शतभिषानी १८ पूर्वाभाद्रपदानी १६ उत्तराभाद्रपदानी २४ रेवतीनी ३० आदिनी घडी. ओ पछीनी प्रत्येक नक्षत्रनी ४-४ घडीओ विष' घटिकाओ छे, आ विष घटिकाओ शुभकार्यमां त्यागी जोइये । विष घटिकाओमां करेल सर्व शुभकार्यनो सत्वर नाश थाय छे, आ विष घटिकाओ लग्न अने नवांश संबन्धि सम्पूर्ण गुणोनो नाश करे छे, जेम कुष्ठ भगन्दर, अर्श, पक्षाघात, शल, क्षय अने वात व्याधिओ प्राण धारियोनो नाश करे छे, ज्योतिःसागरमां विष घटीनो विषय नीचे प्रमाणे लख्यो छ
विवाहव्रतचूडासु, गृहारंभप्रवेशयोः । यात्रादिशुभकार्येषु, विनदा विषनाडिकाः ॥२६१॥
भा०टी०-विवाह, व्रत, चूडाकर्म, गृहारंभ, गृहप्रवेश, अने यात्रा आदि शुभ कार्योमा विष नाडीओ विनदायक छ,
विषघटी दोषापवाद दैवज्ञमनोहरेचन्द्रो विषघटीदोषं, हन्ति केन्द्रत्रिकोणगः । लग्नं विना शुभेद्रष्टः, केन्द्रे वा लग्नपस्तथा ।।२६२॥
भा०टी०-- चन्द्र लग्न विनाना केन्द्र स्थानमा अथवा त्रिकोणमां स्थित होय अने ते शुभ ग्रहोनी द्रष्टिमां होय तो 'विषघटीना दोषनो नाश करे छ, तथा लग्नपति केन्द्रमां पडयो होय अने शुभनी द्रष्टिमां होय तो पण विष घटीजन्य दोष विलीन थाय छे.
फलप्रदीपकार विषघटीदोषनो अपवाद कहे छे
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