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नक्षत्र-लक्षणम्]
पक्षान्तरेण ग्रहणद्वयं स्याद् , यदा तदाद्य ग्रहणोपभङ्गम् । पश्चाद्धि रूद्धं भवति द्वितीयं,
ग्रहोपगं शुध्यति भोगषट्कात् ॥२७८॥ भाण्टी०-चक्री क्रूर ग्रह पाछो पूर्वना दग्ध नक्षत्र उपर जाय छे त्यारे तेथी पूर्वनुं नक्षत्र घुमित थतुं नथी. अने तेनुं पण अतिक्रमण करी तेनी पण पहेलानां नक्षत्र उपर जाय छे त्यारे ते नक्षत्र सक्रूर होवा छतां ते क्रूर दृपित गणातुं नथी । पन्दर दिवसने आंतरे जो बे ग्रहण थाय तो प्रथम ग्रहण गत नक्षत्रना दोपनो भंग थाय छे. अने पछीना ग्रहण- नक्षत्र दूषित पाय छ जे छ वार चन्द्रना भोग व्या पछी शुद्ध थाय छे.'
पीडित नक्षत्र पवादःएकस्मिन्नपि धिष्ण्य, भिन्ने शौ खलग्रहे शशिनि। तच्चन्द्रः कुर्याद्विवाह-यान दिकं कर्म ।।२७९॥
भा टो०-एक नक्षत्र उपर क्रूर ग्रह अने चन्द्र बन्ने होय छतां ते नक्षत्र द्विराशिक होइ क्रूराधिष्टित चरणनी गशि जुदी होय अने चन्द्राधिष्ठितनी जुदी तो ते नक्षत्रमा विवाह यात्रादिक करवां ।
उदाहरण-मृगशिरा नक्षत्रना प्रथम अथवा द्वितीय चरणमा चन्द्र छे. अने जीजा या चोथा चरणमां कर ग्रह छे, आवी स्थितिमां मृगशिरना प्रथम द्वितीय चरणमा चन्द्र होय त्यां सुधी मृगशिरमां शुभकार्य करवामां दोष नथी।
___ ज्योतिष्प्रकाशमा लखे छे, १ जो संपूर्ण ग्रहण होय तो छ भोगे, अर्ध ग्रहण होय तो ३ भोगे अओ पाद ग्रास होय तो १ भोग पछी ग्रहण नक्षत्र शुद्ध थाय छे, एम गन्थान्तरोमां कहेल छे. ।
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