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[कल्याण-कलिका-प्रथमखरे वत्सस्थितियंत्रक
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कन्या
वृश्चिक
तुला पूर्वदिशा
सिंह
IV. 1 / 2 | | | |
कर्क
उत्तर
वत्सचक्र
धन
दक्षिणदिशा
मकर ५/१० | १५ | ३० | १५ | १० ५
कुं
मिथुन
पश्चिमदिशा
| वृष . मेष मीन 1/५ | १० | १५ | ३० | १५ | १० |५ नीचे जगावेल कार्योमां वत्सदोष नडतो नथी. द्वारस्याभ्यन्तरे द्वारे, प्रासादे च चतुर्मुखे प्रतिष्ठामण्डपे होमस्थाने वत्सं न चिन्तयेत् ॥७३॥
भा टी-वास्तुना बाह्य मुख्यद्वारनी अंदरना द्वारारोपणमां, चतुर्मुख प्रासाद अथवा घरप्रतिष्ठा मंडप के होमशालाने द्वारारोपणमां वत्सदोष विचारवानी आवश्यकता नथी.
राहुचक्रनुं निरूपणमागसर पोसह माह अंतर, पूविइं वसइ राहनिरंतर । फागुण चैत्र वैसाख संजुत्त, दक्षिण राह वसइ निरुत्त ॥१॥ जेठ आसाढ श्रावण मासिइं, पश्चिम राहु वसई विलासिहं।
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