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तिथि
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रो | पुन
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मृ
जलकूर्म चक्र
नक्षत्र
म ह वि मू
पु पूफा चि अनु पूषा
[ कल्याण- कलिका-प्रथमण्डे
कृ आर्द्रा आले उफा स्वा
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पूफा चि अनु
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१४ मृ षु पूफा चि अनु पूषा
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१५
उषा श रे
कृ आर्द्रा आले उफा स्वाज्ये गृहद्वार शाखाचक्र - मुहूर्त चिन्तामणौसूर्यक्षयुगमैः शिरस्यथ फलं लक्ष्मीस्ततः कोणभै, ainani ततो गजमितैः शाखासु सौख्यं भवेत् । देहल्यां गुणभैर्मृति गृहपतेर्मध्यस्थितैर्वेदभैः । सौख्यं चक्रमिदं विलोक्य सुधिया द्वारं विधेयं शुभम् ॥ ६५ ॥
मू
श्र
पूषा | ध
ज्ये उषा श
मू पूषा
पूभा | अश्वि
उभा भ
श रे
पूभा अश्वि
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उभा भ
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