Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 462
________________ मुहूर्त-लक्षणम् ] कूर्मचक्र-ज्योतिःसागरेतिथिस्तु पञ्चगुणिता, कृत्तिकावृक्षसंयुता। तथा द्वादशमिश्रा च, नवभागेन भाजिता ॥६२ । जले वेदा मुनिश्चन्द्रः, स्थले पश्च द्वयं वसुः। त्रिषट्क नव चाकाशे, त्रिविधं कर्मलक्षणम् ॥६॥ जले लाभस्तथा प्रोक्तः, स्थले हानिस्तथैव च । आकाशे मरणं प्रोक्तमिदं कूर्मस्य चक्रकम् ॥ ६४ ॥ भाटी०-तिथिना आंकने पांचगुणो करी कृत्तिकाथी गणतां जे नक्षत्रनो अंक आवतो होय ते तिथिना अंकमां जोडवो अने ते अंक राशिमा वली १२ नो अंक मेलावीने तेने नवनो भाग देवो, भाग लागतां शेष १२४७ मांनो कोई अंक रहे तो कूर्म जलमां, २।५।८ रहे तो कूर्म स्थल उपर अने १६।०। शेष रहे तो कूर्म आकाशमां जाणवो. जलमां कर्म होय तो लाभ, स्थलमां होय तो हानि तथा आकाशमां कूर्म होय तो मरण थाय. आ उपरथी कूर्मनो वासो जलमां जोई मुहूर्त आप, कूर्म स्थलमां छे के आकाशमां ए जोवानुं महत्त्व नथी पण महत्त्व जलकर्मनुं छे तेथी जलकूर्म जोवानो एक सुगम उपाय नीचे जणावीये छीए. जलकूर्मचक्र नीचे आपेल १-थी १५ सुधीनी प्रत्येक तिथिना आंकनी सामे आपेल ९-९ नक्षत्रो पेकीनु कोइ पण नक्षत्र आवतुं होय तो ते दिवसे कूर्मनो वास जलमां छे एम जाणवू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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