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________________ ३८२ तिथि १ २ mo ३ ४ ५ ६ ७ ८ Jain Education International रो | पुन HTV मृ जलकूर्म चक्र नक्षत्र म ह वि मू पु पूफा चि अनु पूषा [ कल्याण- कलिका-प्रथमण्डे कृ आर्द्रा आले उफा स्वा रो मृ क्र रो पुन म ह वि मृ पु पूफा चि अनु क आ आले उफा स्त्रा रो पुन म वि मृ पु पूफा चि अनु आ आले उका स्वा पुन म ह वि पु पूफा चि अनु आ आले । उफा स्वा ho ह श्र ध ज्ये उषा श्र पूभा अ ध उभा भ ९ ज्ये उषा श रे १० मू श्र पूभा अ ११ पूषा ध उभा भ १२ ज्ये उषा श रे १३ ह बि मू श्र पूजा अश्वि १४ मृ षु पूफा चि अनु पूषा ध उभा भ १५ उषा श रे कृ आर्द्रा आले उफा स्वाज्ये गृहद्वार शाखाचक्र - मुहूर्त चिन्तामणौसूर्यक्षयुगमैः शिरस्यथ फलं लक्ष्मीस्ततः कोणभै, ainani ततो गजमितैः शाखासु सौख्यं भवेत् । देहल्यां गुणभैर्मृति गृहपतेर्मध्यस्थितैर्वेदभैः । सौख्यं चक्रमिदं विलोक्य सुधिया द्वारं विधेयं शुभम् ॥ ६५ ॥ मू श्र पूषा | ध ज्ये उषा श मू पूषा पूभा | अश्वि उभा भ श रे पूभा अश्वि For Private & Personal Use Only उभा भ रे www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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