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परिकर लक्षणम् ]
खुलासो
उपर्युक्त वे यक्ष-यक्षिणी कोष्टको पैकीनु कोष्ठक पहेलुं निर्वाणकलिकादि जैन विधि ग्रन्थोने अनुसारे छे, आ कोष्ठकमां पण ग्रन्थान्तरना पाठान्तरो () आ ब्रेकेटमा सूचव्या छ, वांचक गणे आ कोष्ठकना मूल पाठ प्रमाणे ज यक्ष-यक्षिणीओनां स्वरूप अने आयुधादि बनाववां जोइये. __ कोष्टक बीजें प्राचीन शिल्पग्रन्थोना आधारथी तैयार करेलुं छे, आ कोष्ठक प्रमाणे आपणे आज काल यक्ष-यक्षिणीओनी मूर्तिओ करावता नथी, छतां प्राचीन कालीन कोइ देव-देवीनी मूर्ति मली आवे तो तेने ओलखवा माटे आ कोष्ठक पण उपयोगी थइ पडशे एम धारीने आ बीजु कोष्ठक आपेल छ, एम जाणवू.
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