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[ कल्याण-कलिका-प्रथम-खण्डे शिवस्वामिक (२जो अने १लो) मुहूर्त वर्जित करवो आम जे जे मुहूर्तो जे जे वारे वर्जनीय छे ते कयां.
फलितार्थ-उपर्युक्त निरूपणथी जे फलितार्थ निकले छे तेनो सार एटलो ज छे के दिवस-रात्रिनो अमुक समय शुभ अने अमुक अशुभ होय छे, शुभ समयमां आरंभेलं शुभ कार्य सिद्ध थाय छे ज्यारे वर्जित समयमां आरंभेलं कोई पण शुभ कार्य सिद्ध थतुं नथी. कोई पण दिवसे दिवसना १-२-४-११-१२-१५ मा क्षण सिवायनो शेष समय शुभ होय छे, ज्यारे कोई पण गतिमां रात्रिनो १-२-६-७ मो, आ चार क्षणो सिवाय शेष समय शुभ होय छे, एम छतां ते दिवसे वार शो छे ए पण जोg अने वार परत्वे वर्जित क्षण होय तो ते शुभ होय तो य वर्जवो, रविवार होय तो १४मो, सोमवारे ९मो, बुधवारे ८मो, गुरुवारे ६ठो, अने शुक्रवारे ९मो क्षण शुभ छे छतां वर्जवो. वार परत्वे रात्रिनो ७मो क्षण वर्जित करेल छ अने ते आमे य रात्रिना ४ वर्जित क्षणो पैकीनो एक छे.
नक्षत्रनो प्रतिनिधि पण क्षण-उपर कहेवायुं छे के पूर्वे नक्षत्र अने मुहूर्तना बले सर्व कार्यो करातां हता, अने अवसरे नक्षत्र बलना अभावे नक्षत्रनुं प्रतिनिधित्व पण मुहूर्तने अपातुं हतुं, द्रष्टान्त तरीके अश्विनी नक्षत्र विहित कार्य करवू छे; पण अश्विनी आजथी पच्चीसमे दिवसे आश्वानुं छे, तो शुं त्यां सुधी ए कार्य बंध राखवू के ते कोई उपायान्तरथी करवु ? आवी परिस्थितिमां मुहूर्तनुं महत्व जणावनार ज्योतिःशास्त्रे मार्ग बतावतां कर्तुं छे के विहित नक्षत्र नथी अने कार्य करवं आवश्यक छे तो नक्षत्र आवे त्यां सुधी बेसी रहेवानी जरुरत नथी, नक्षत्र स्वामिक मुहूर्तमां ते कार्य करी लेवं एटले ते ते नक्षत्रमा ज कर्यु गणाशे. मुहूर्तशास्त्र आवा नक्षत्र प्रतिनिधि मुहूर्तने 'क्षण नक्षत्र' एटले के मुहूर्तरूप नक्षत्र कहे छे, वाचकगण
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