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मुहूर्त-लक्षणम् ___ भाण्टी -जे वर्षमा क्षयमास होय ते वर्षमा घोर युद्ध, दुष्काल, प्रजा पीडा, अथवा छत्रभंग करे छे.
पक्षशुद्धि-सामान्य रीते गृहारंभ, प्रवेशादि प्रत्येक शुभ कार्य शुक्लपक्षमा करवानुं विधान छे. शुक्लपक्षनी षष्ठीथी कृष्णपक्षनी पंचमी सुधीना १५ दिवसोने ज्योतिष शास्त्रकारो शुक्लपक्ष रूप गणे छे, केम के शुदि ५ सुधी चन्द्र कृश होय छे. अने वदि ५ पछी चन्द्र क्षीण बली थतो जाय छे छतां प्रतिपदानी सांजे चन्द्रदर्शन थई जाय तो शुदि २ थी शुभ कार्यों करवामां हरकत जेवू नथी, एज रीते वदि ८ मी सुधीमा चन्द्र विशेष क्षीण न थतो होवाथी कोई पण शुभ कार्य करवू अयोग्य नथी. अष्टमीनो पूर्वार्ध पूर्ण थया पछी जो कोई आवश्यक कार्य करवू पडे तो चन्द्रबलनी साथे ताराबल पण अवश्य जोवु अने त्रीजी, पांचमी अथवा सातमी तारा आवती होय तो कार्य जरूरतर्नु होय तो पण करवू नहिं, आ संबन्धमा ज्योतिषनो निम्न लिखित नियम अवश्य ध्यानमा राखवो
कृष्णस्याष्ठम्यर्धा-दनन्तरं तारकाबलं योज्यम् । प्रतिपत्प्रान्तोत्पन्नं, सन्ध्याकालोदयं यावत् ॥ २३ ॥
भाण्टी०-कृष्णपक्षनी अष्टमीनो अर्धभाग व्यतीत थया पछी शुदि प्रतिपदाने अन्ते आवता सन्ध्याकाल पर्यंत ताराबललो उपयोग करवो. आ विषयमां प्राचीन मत एवो छे के कृष्णपक्षनी दशमी पर्यंत सर्व कार्यों-चन्द्रबल जोईने करवा. नक्षत्र समुच्चय ग्रंथमां लखे छे
उदिते च तथा चन्द्रे, शुभयोगे शुभे तिथौ । कृष्णस्य दशमी यावत् , सर्वकार्याणि साधयेत् ॥ २४ ॥
भा०टी०-चन्द्र उदित होय त्यारं शुभयोग अने शुभतिथिमा कृष्णपक्षनी दशमी पर्यंत बधां कार्यों करवा.
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