________________
३६४
[ कल्याण-कलिका-प्रथम-खण्डे अर्थात् शुक्ल प्रतिपदाथी अधिक मास लागे छे अने ते पछीनी अमावास्या सुधी रहे छे. एनुं तात्पर्य ए छे के महीनो पूर्णान्त मानो चाहे अमान्त, पण अधिकमास तो अमान्त ज होय. पूर्णान्तमास माननार देशमां पहेला मासनो शुक्ल अने बीजानो कृष्णपक्ष मली ३० दिवसनो मल मास गणाशे।
क्षयमास-अधिकमास जेम शुभ कार्यमा वर्जित छे तेम क्षय मास पण शुभ कार्यों करवामां वर्जित करेल छे. मासक्षय कोई वार १९ वर्षे अने कोई वार १४१ वर्षे आवे छे; ज्यारे क्षयमास पडे के त्यारे मासवृद्धि पण अनिवार्यपणे थाय ज छे, एटले ए वर्ष घणुंज उथल-पाथल करनारुं निवडे छे. क्षयमासर्नु लक्षण वसिष्ठ कहे छे के
आद्यन्त दर्शयोर्मध्ये, तयोराधन्तयोर्यदा । संक्रान्तिद्वितयं चेत् स्याम्यूनमासः स उच्यते ।। २१ ।।
भाण्टी-पहेली अने बीजी अमावास्यानी वचमां ज्यारे बे सौर संक्रांतिओ थाय छे त्यारे ते (बे अमावास्या वच्चेनो) समय क्षयमास गणाय छे. क्षयमासना समयमा कर्तव्य कर्मने अंगे वसिष्ठ कहे छे के
मासप्रधानाखिलमेव कर्म, मुक्त्वाखिलं कर्म न कार्यमत्र । यज्ञोपवासव्रततीर्थयात्रा,
विवाहकर्मादि विनाशमेति ॥२२॥ भाण्टी-मास प्रतिबद्ध सर्व कार्यों छाडीने बीजां यज्ञ, उपवास, व्रत, तीर्थयात्रा, विवाह आदि सर्व कार्याने न्यूनमासमा करातां नाश पामे छे. क्षयमासर्नु अशुभ फल कयुं छे के
क्षयमासो भवेद्यस्मिन्, तस्मिन् वर्षेऽतिविग्रहम् । दुर्मिक्षं वाथवा पीडा, छत्रभंगं करोति वा ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org