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मुहूर्त-सक्षणम्
३६१ अभाव २, सूर्यसंक्रांति ३, पापषड्वर्ग ४, छठो शुक्र ५, आठमो मंगल ६, गंडांत ७, र कर्तारी ८, बारमो, छट्ठो, आठमो चन्द्रमा ९, कूर ग्रह सहित चन्द्रमा १०, पति-पत्नीनी जन्मराशिथी आठमी राशिनुं लग्न ११, विषघटी १२, दुर्मुहूर्त १३, वारदोष १४, खाजूंरिक चक्रमां पाद विद्ध नक्षत्र १५, ग्रहणादि उत्पात विद्ध नक्षत्र १६, क्रूर विद्ध नक्षत्र १७, क्रूराधिष्ठित नक्षत्र १८, कुनवमांशक १९, महापात २०, अने वैधृति २१; आ एकवीश महादोषो छे. ए महादोषा प्रयत्नपूर्वक वर्जवा जोईये एम नारदजी नीचेना पद्यमां अनुरोध करे - एते प्रोक्ता महादोषा, वर्जनीयाः प्रयत्नतः । यदि मोहात् कृतं कर्म, तदा विघ्नं भवेद्धवम् ॥ १७ ॥
भाण्टी०-कहेला ए महादोषोने यत्नपूर्वक टालवा जोईए, जो कोईए मोहवश पण महादोषमां कंइ काम कर्यु तो अवश्य विघ्न थशे।
उक्त महादोषो पैकीना दोषो नंबर २-४-५-६-८-९-१० -११-१९ अने लग्न गंडांतनो संबंध लग्न साथे होई लग्नशुद्धिना प्रकरणमा निरूपण कराशे. तथा दोषो नम्बर १-३-१२१३-१४-१५-१६-१७-१८-१९-२०-२१ अने तिथि नक्षत्र गंडांतनो संबन्ध दिनशुद्धिनी साथे होवाथी तेना निरूपण प्रसंगे ते ते यथास्थान कहेवाशे. ___महादोषो उपरान्त बीजी पण केटलीक वातो मौहूर्तिके हर वखत ध्यानमा राखवा जेवी होय छे के जेनो अमो प्रथम निर्देश करीने मूल वात उपर आवशुं. ___वर्ष, अयन, मास तथा पक्षनी शुद्धि, गुरु-शुक्र-चन्द्रास्तकाल, तथा एमनो बाल्य-वार्द्धश्यकाल; इत्यादि वातोनो विचार कर्या
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