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प्रासाद-लक्षणम् ]
भा०टी०-प्रासादनी चोरस भूमिना दश भाग करी बे पे भागनी भीतो करी ४ भाग भीतोमा रोकवा अने ६ भागनो गभारो करवो, ए गमारानु जे मान होय तेना त्रीजा भागना माननी प्रतिमा बेसाडवी ते उत्तम गणाय, उत्तम मानमांथी दशमांश हीन करबाथी मध्यम अने पञ्चमांश हीन करवाथी कनिष्ठ माननी प्रतिमा कहेवाय छे.
प्रासादमाने प्रतिमामान१ हाथना प्रासादे प्रतिमा ६ आंगलनी, २ हाथना प्रासादे प्रतिमा १२ आंगलनी, ३ हाथना प्रासादे प्रतिमा १८ आंगलनी अने ४ हाथना प्रासादे प्रतिमा १ हाथना उदयनी वेसाडवी, आम "प्रासाद तुर्यभागस्य, समाना प्रतिमोत्तमा" आ वचनानुसारे प्रासादनुं जे मान होय तेना चोथा भागनी ऊंची प्रतिमा उत्तम माननी गणाय छे, प्रतिमानुं मान द्वारोदय, गर्भविस्तार अने प्रासादविस्तार आदि अनेक उपायो वडे निर्णीत कराय छे, छतां आ छेल्ली प्रासाद विस्तारना चोथा भागे प्रतिमामान राखवानी रीति अधिक प्रचलित छ, प्रतिमा विषम अंगुलनी होय तेज श्रेष्ठ गणाय छे, माटे प्रासादमाने तेनुं जे मान आवतुं होय तेमां १ आंगल वधारीने अथवा घटाडीने विषमांगुलनी प्रतिमा बेसाडवी, विषमांगुल माटे ६ ने बदले ७, १२ ने बदले १३ अथवा ११ नी प्रतिमा ज राखवी योग्य गणाय, कदापि तैयार प्रतिमा प्रमाणोपेत न मलतां ओछा माननी मले तो ते चाली शके पण उत्तम मानथी १ आंगलथी अधिक उंची तो न ज चाले.
शिखरशृंगो अने उरू शृंगो (प्रासाद मण्डने) छायस्योद्धर्वे प्रहारः स्यात्, शंगे शंगे तथैव च। प्रासाद-शृंग-शृंगेषु, अधोभागे तु छाद्यकम् ॥३५८॥
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