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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे आ 'अ' ग्रन्थना आधारे पूर्व थतुं हशे. '' ग्रन्थ ८ आंगल लखे छ तेनुं कारण के ते बौद्ध प्रतिमानो प्रतिपादक ग्रन्थ छे. बौद्ध प्रतिमाओना ४ आंगलना केशान्तमस्तक पर ८ आंगलनो 'जटामुकुट' मानेलो छे. _ 'जि' 'वा' ग्रन्थो उष्णीप विशे कई लखता नथी, कारणके आ ग्रन्थकारोए उष्णीषो सामेल गणीने अनुक्रमे केशान्तमस्तक ६ अने ५ आंगलनुं गण्युं छे.
' ग्रन्थमा उष्णीष अने केशान्तमस्तकनो आंक नथी ज्यारे 'न' ग्रन्थमां ३ आंगलर्नु केशान्तमस्तक तो बताव्यु छे पण उष्णीष विषे कंईज कह्यं नथी. आनुं कारण ए छे के ए बन्ने ग्रन्थो मुख्यत्वे नवताल प्रतिमाओर्नु निरुपण करे छे, जैनप्रतिमाओर्नु नहि. उष्णीषनो व्यवहार मुख्यत्वे जैनप्रतिमाओने अंगे छे. 'न' ग्रन्थे 'केशान्तमस्तक' विषे लख्युज छे अने '' ग्रन्थमां पण सकेश मुख दीर्घता १६ आंगलनुं लखीने सकेशमस्तकनुं निरुपण करी ज दीधुं छे.
(२) 'नेत्रदै'नां कोष्ठकोमा ८।४ अने २ ना आंकडा नजरे पडशे. आमां ८ नो आंक बे नेत्रोनो संयुक्त छे, ४ ना एक एक नेत्रना छे, ज्यारे २ नो अंक पांपणो वच्चेना नेत्रनी लंबाईना समजवाना छे.
(३) कर्ण दैयना कोष्ठकोमा ४० १० अने ४ ना आंकडा नजरे पडे छे. आमां ४/- अने ४ ना आंकडा दिगम्बर संप्रदायनी प्रतिमा तथा अन्य देवोनी प्रतिमाओना कानोनी दीर्घता सूचवनारा छे, ज्यारे १० नो आंक श्वेताम्बर संप्रदायनी जिनप्रतिमाना कानोनी लंबाई सूचवे छे. श्वेताम्बरो प्रतिमाना कानोनो संबन्ध ठेठ स्कंध सुधी जोडे छे. एटले नीचेनो भाग लंबावीने स्कंधथी १
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