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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे ववी उपर जे मान-प्रमाण कयुं छे युक्तिथी बनावतां प्रतिमा उत्तम मानवाली वनशे.
हे जय ! आ विषयमां शास्त्रझोनुं जे कर्तव्य हतुं ते तने कडं. आ अने पूर्व प्रतिमाना प्रमाण विषे जे कंई कहेवामां आव्यु, ते विधिथी प्रतिमार्नु निर्माण करवु जोईये.
प्रतिमा-मानांक कोष्टकउपर जे प्रतिमाना मानांको जयसंहितामा आप्या छे ते अने बीजा ६ शिल्पप्रन्थोमां आपेला पानांकोनुं अमे अत्र एक कोष्टक आपीये छीये, तेनुं कारण ए छे के जयसंहितामां पूरा अंको आप्या नथी वली ए ग्रन्थना श्लोकोमां भरपूर अशुद्धिओ होवाथी केटलाक अंकोमा अशुद्धिओ होवानो पण विशेष संभव छ; एटले साथमां आपेल बीजा ग्रन्थोना मानांको वांचकगणने उपयोगी थइ पडशे.
कोष्टकमां १ जयसंहिता, २ जिनप्रतिमा विधान, ३ वास्तुसार, ४ अपराजितपृच्छा, ५ बृहत्संहिता, ६ प्रतिमामान लक्षण अने ७ समरांगण सूत्रधार; आ ७ ग्रन्थोना मानांको आप्या छे. आ ग्रन्थो पैकीना पहेला ३ ग्रन्थोमांना अंको खास जिनप्रतिमाना मानांको छे, ज्यारे बाकीना ४ ग्रन्थोमां जे अंको मले छे ते ९ ताल प्रतिमा संबन्धि छे. जिन प्रतिमानो पण ९ ताल प्रतिमामा समावेश होवाथी आ चार ग्रन्थोना अंको पण जिनप्रतिमा माटे उपयोगी निवडशे ए निःसंदेह बात छे. ___लाघवार्थ अमोए कोष्टकमां ग्रन्थोना नामना आद्याक्षरनो ज 'ज' 'जि' इत्यादि उल्लेख कर्यों छे, वाचकगणे 'ज'नो अर्थ " जयसंहिता, 'जि'नो अर्थ जिनप्रतिमाविधान," इत्यादि समजवानो छे. विशेष स्पष्टीकरण कोष्टकोनी पछी आपीशु.
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