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प्रासाद-लक्षणम्] करवो, वास्तुशास्त्रना ज्ञाताओए कहेल मंडोवरानुं अने शिखरर्नु मान आ प्रमाणे कडं.
रेखाशिल्पशास्त्रमा शिखरनी रेखा महत्त्वनुं स्थान धरावे छे. अपराजितपृच्छामां रेखाना निरूपणमा ३ सूत्रो (अध्यायो) अने १०१ श्लोको रोकायेला छे, कोइ पण जातना प्रासादना शिखर, निर्माण रेखा ज्ञान विना निर्दोषपणे थइ शकतुं नथी, शिखरनी ऊंचाई अने तेना वलन (नमन)नुं परिमाण नक्की करवा सूत्रनी दोरी बडे लीटीओ खंचवामां आवती, तेओने शिल्पशास्त्रोमां 'रेखा' ए नाम अपायुं छे.
. रेखाना भेदोशिल्पशास्त्रमा रेखाओ वे प्रकारनी बतावी छे, एक 'नागरी रेखाओ अने बीजी 'चन्द्रकला ' रेखाओ.
नागरी रेखाओनी बे पच्चीसीओ होय छे, एक पच्चीसी 'उदयभेदोद्भवा' अने बीजी 'कलाभेदोद्भवा.' बने पच्चीसीओनो अनुक्रमे शिखरना उदय अने वलनमा उपयोग थाय छे, बीजी पच्चीसीनी रेखाओने खंड अने कलाओ लागती होवाथी 'कलाभेदोद्भवा' ए नाम पडयुं छे..
नागरी रेखाओ पैकीनी ए बीजी पच्चीसीनी पहेली रेखा पंचखंडी, बीजी षट्खंडी, आम एक एक खंडनी वृद्धिए २५ मी रेखा २९ खंडी थाय छ, आ जातिनी रेखाओमाँ ५ थी ओछा अने २९ थी अधिक खंडो होता नथी. - आ रेखाओना प्रतिखंडे एक एकनी वृद्धिए कलाओ लागे छे, आ पच्चीसीनी पहेली पंच खंडी रेखा के जेनु नाम 'चन्द्रकला'छे, एना पहेला खंडमां १, बीजामां २, एम वधारतां पांचमामा ५ कलाभो उपजे छे, एकंदर एना ५ खंडोमां १५ कलाओ लगाडाय
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