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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे भा०टी०-१ कोण उपर अनुक्रमे ३ शंगो निर्गमे १-१ भागनां करवां, रेखाना मूल भागमां शिखर १६ भाग जेटलं विस्तृत करवू. उरःशंग शिखरना अर्ध भागे अर्थात् आठ भागे विस्तारमां कर. बीजुं उरःशंग पहेलाना पोणा भागर्नु अर्थात् ६ भागनुं अने तेथी आगेर्नु उरःशृंग विस्तारे ४ भाग जेटलुं करवं. कर्णे अने प्रतिरथे सरखा क्रमो करवा. नंदिए २ क्रमो चढाववा अने कर्ण प्रतिरथ तथा भद्र उपर ३-३ शंगो चढावा, कर्णनी नन्दिओए २-२ कूटडा चढाक्वा अने ८ प्रत्यंगो चढाववां, भद्रनी नन्दिए १-१ कूटडो चढाववो. आ प्रकारना तल तथा शिखरवालो प्रासाद 'पद्मराग' ए नामथी ओलखाय छे. अंडक संख्या ७३.
२ पद्मरागना भद्रे चोथु उरःशंग लगाडतां ":विशाल " नामनो बोजा प्रकारनो जिनप्रासाद बने छे. अंडक ७७.
३ कोण उपर १-१ कूटडो अने नन्दिओ उपर १-१ शंग वधारतां " विभव" नामनो प्रासाद बने छे. अंडक ९३.
४ उपरनी रचनामां भद्रे १-१ शृंग वधारतां "रत्नसंभव" प्रासाद तैयार थाय छे. अंडक ९७.
५ उपरना प्रासादनी भद्रनन्दी अक्रमी करतां " लक्ष्मीकोटर" प्रासादनुं निर्माण थाय छे. अंडक ८१. ___अपराजित पृच्छाना १६४ मा सूत्रमा जिनेन्द्रप्रासाद-पञ्चकनी निर्माणविधि उपर प्रमाणे बतावेल छे, आजना समयमां आवा प्रासादोनुं निर्माण दोढथी बे लाख द्रव्यना व्ययथी थई शके छे.
- केसरी आदि २५ नागर प्रासाद
अपराजित पृच्छामां आ प्रासादोनुं सांधार प्रासादरूपे सवि. स्तर वर्णन छे पण त्यांज लखे छ के
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