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[कल्याण-कलिका प्रथमखण्डे हाथनो दण्ड बनाववो, आ माप ७ हाथ सुधीना प्रासादना
दण्डने माटे समजवू. (२) ८ था २५ हाथ सुधीना प्रासादोने माटे दण्डनुं मान ते प्रासा
दना गर्भना मान जेटलं राखq. अने (३) २६ थी ५० हाथ सुधीना कोइ पण माननो प्रासाद होय तो
तेना दण्डनु मान मूलरेखाना हिसाबे राखq, एटले के मंडोवरानी रेखानी उंचाई जेटलुं दण्डनुं मान गणवू. आ माननो दण्ड प्रासादना व्यासथी लगभग एक द्वितीयांश जेटलो लंबोथाय छे.
दण्डना उपादान काष्ठोमुख्य रीते तो 'दण्ड' अन्दरथी पोकल न होय, कीट लागेल न होय अने काणा-कोतरवालो न होय. एवा वांसनो ज बनावको एवो शास्त्रादेश छे, पण तेवा प्रकारनो वांश न मले तो बीजा उत्तम वृक्षोना काष्ठनो पण बनावी शकाय छे. आ संबन्धमां अपराजितपृच्छामां नीचेनुं विधान दृष्टिगोचर थाय छे
वंशमयस्तु कर्तव्यः, सारदारुमयस्तथा । समग्रन्थिविधातव्यः, पर्वभिविषमस्तथा ॥६॥
भाण्टी०-ध्वजदण्ड वांशनो बनाववो अथवा बीजा श्रेष्ठ लाकडानो पण बनावी शकाय छे. जो वांशनो होय तो ते समसंख्याक गांठो अने विषम संख्याक पर्वो (बे गांठो वच्चेना भारा) वालो होवो जोइए. (बीजा लाकडानो होय तो तेने समसंख्याक बंगडियो लगाडीने तेवो बनाक्वो.)
ग्रंथान्तरमां दण्डना उपादान रूपे नीचे प्रमाणे पण केटलाक वृक्षोनो नाम निर्देश कर्यों छे.
वंशमयोऽथ कर्तव्य, आंजनो मधुकस्तथा ।
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