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कलश-लक्षणम् ] वाथी उत्तम अने षष्ठांश हीन करवायी कनिष्ठ मान गणाय छे.
आजकाल कलशमानमा चालती भूलउपर नागरादि जातिना प्रासादोना कलशोनां भिन्न भिन्न मानो अने ते प्रत्येकना उत्तम मध्यम कनिष्टादि भेदो लख्या छे छतां आज कालना कारीगरो तेनो कंड पण उपयोग करना नथी. अने सर्व मानना प्रासादोना कलशानुं मान एकज प्रकाग्नु गम्व छ. ग्वरी वस्तु तो ए छे के दण्डनी जेमज कलशोनुं मान पण कनिष्ठ प्रासादोमा उत्तम अने उत्तम प्रासादोमां कनिष्ट प्रकाग्नुं गवर्नु जोड्ये, बधा मानना प्रासादोना कलशो आठमे भागे विम्नार बालाजन राखवा जोइये, सांधार प्रासादोमां के ८-९ गनना निरन्धार प्रासादोनां कलशोमां कलशो कनिष्ठमानना अथवा वीजा प्रकाग्ना मानवाला बनाववा जोइये, वीजी पण कलशोना मानने अंगे कारीगगेमां एक भूल प्रचलित थयेली छे अने ते चवरियोना कलशोना मानमां.
केटलांक मंदिरोना गभारामां चांदीनी अथवा सफेद पापाणनी ३ घुमटियोवाली चवरियो बनावे छे, अने ते उपर कलशिया चहावे छे, ए कलशोनुं मान पण कारीगरो चवरीना व्यासना अष्टमांश जेटलं नागर प्रासादोना कलशोना हिसावे राखे छे, जे खरी रीते भूलभरेलुं छे. चवरियो ए नागरादि जातिमां नहि पण वास्तवमां वलभी प्रासादोनुं लघुरूप छ, अने वलभी प्रासादोना कलशोनुं मान अपराजितपृच्छामां प्रासादनां षष्ठांश तुल्य राखवानुं विधान छः आथी स्पष्ट थाय छे के तेवी चवरियो उपरना कलशो तेना अष्टमांश तुल्य नहिं पण षष्ठांश तुल्य विस्तृत करवानुं कारीगरोए लक्ष्य राखवू जोइये.
कलशनी उंचाईकलश विस्तारमा ६ भागनो अने उदयमां ९ भागनो होय छे,
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