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प्रासाद-लक्षणम् ]
२२१ जमणा विभागो सहित ६ भागर्नु भद्र करवू, आ मंडपना आगलना तथा पाछलना भद्रोने प्रतिभद्रो न करवा, आवो ६४ स्तंभनो पुष्पक नामक मंडप बनाववो.
२ पुष्पभद्र-. त्रण दिशाओनां भद्रोने प्रतिभद्रो लगाडवा अने प्रासादमुखे केवल प्राग्नीव लगाडवाथी पुष्पभद्र नामनो ६२ स्तंभनो मंडप बने छे.
सुप्रभपुष्पकमांथी ४ स्तंभ ओछा करतां ६० स्तंभनो सुप्रभ नामनो मंडप बनावो. __ एज प्रमाणे २-२ स्तंभो ओछां करता उक्त दल विभक्तिना २० सुधीनां मंडयो बनाववा.
सुग्रीव मंडपना भद्रो ४ भागनां अने कोणो ३-३ भागना करवा, भद्रोनो निर्गम पूर्व कह्या प्रमाणे ज करवो. __समरांगण सूत्रधारना उक्त वर्णनथी समजाय छे के पुष्पकथी विमानभद्रमुधीना मंडपोनी दल रचना पुष्पकनी रचनाने अनुसरीने करवानो छे ज्यारे सुग्रीव पछीना मंडपोनी दलविभक्ति सुग्रीवना जेवी करवी एवो उक्तग्रंथनो आशय समजाय छे. .
हवे अपराजित पृच्छाना पाठ उपरथी पुष्पकादि २७ मंडपोर्नु वर्णन जोइये, आ ग्रन्थमां पण मंडपोनो नाम क्रम तो पुष्पकथी ज शरु थाय छ
पुष्पकः पुष्पभद्रश्च, सुप्रभो मृगनन्दनः । कौशल्यो बुद्धिसंकीर्णो, गजभद्रो जयाह्वयः ॥५५७॥ श्रीवत्सो विजयश्चैव, वस्तुकीर्णश्च श्रीधरः । यज्ञभद्रो विशालाख्यः, सुश्रेष्ठः शत्रुमर्दनः ॥५५८॥
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