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प्रासाद-लक्षणम् ]
१६९ १७ क्षितिघर, १८ समात्र, १९ संयुत, २० शेखर, २१ प्रनापूर्ण, २२ प्रवर्त, २३ प्रधान, २४ रेखाविभूषण अने २५ विजयानन्द; ए २५ प्रकारना स्कंधो नामथी जाणवा.
चन्द्रकला रेखाओअथातः संप्रवक्ष्यामि, रेखाभेदं पृथग विधम् । चन्द्रकलादि-समुत्पत्तिः, षोडशैव प्रकीर्तिता ॥४०३॥ त्रिखण्डादौ खण्डवृद्धिावत्खण्डान्यष्टादश। षोडशैव समाचारा-श्चन्द्रकलादौ कीर्तिताः ॥४०४॥ अष्टादावष्टषष्टयन्तं, चतुर्वृद्धिक्रमेण तु। रेखाणां च प्रयोक्तव्यं, षट्पञ्चाशच्छतद्वयम् ॥४०५।।
भा०टी०-हवे जुदा प्रकारना रेखाभेदने कहुं छु, चन्द्रकला रेखाओनी मूल उत्पत्ति १६ प्रकारनी कही छे, एमां पहेली चन्द्रकला रेखा त्रिखंडा छे, ते पछी १-१ खंडनी वृद्धि थतां १६ मी चन्द्रकला सुधी १८ खण्ड थाय छे, आ १६ मूलरेखाओ समचारवाली छे, जेम पहेलीथी बीजीमां १-१ खंड वधे छे तेम एमना खंडोमां ४-४ कलाओनी पण वृद्धि थाय छे, पहेली त्रिखंडाना प्रत्येक खंडमां ८-८ कलाओ लागे छे, तेम बीजी चतुष्खंडाने च्यारे खंडोमां १२-१२ कलाओ लागे छे, आ नियम प्रमाणे १६ मी १८ खंडाना तमाम खंडोमा ६८-६८ कलाओ लागे छे, आ १६ रेखाओ अने तेमां ए प्रत्येकनी जातिनी १५-१५ रेखाओ शामेल करीने २५६ चन्द्रकला रेखाओनो शिखर निर्माणमां उपयोग करवो.
१६ मूलचन्द्रकला रेखाओनां नामशशिनी शान्तिनी चैव, लक्ष्मिणी कामिनी तथा। पुष्पिणीच शुभा शान्ता, आल्हादाकुमुदा तथा ।४०६।
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