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प्रासाद-लक्षणम् ] विगुणश्च सपादौ द्रौ, साधौं पादोनकास्त्रयः । त्रिगुणोऽथ सपादोऽसौ, सार्धः पादोनवेदकः ॥४११।। चतुर्गुणः सपादश्च, सार्घः पादोनपश्चकः। इति षोडशधा चारं, त्रिखंडाद्यासु लक्षयेत् ॥४१२॥
भा०टी०-रेखा विस्तार तुल्य वा रेखा विस्तारथी सवायो अथवा कर्णव्यासतुल्य रेखानो उदय करवो, रेखाने तलछन्दे १० विभाग जेटली विस्तृत करीने स्कन्धविभागे तेने अंदर वाली ६ भाग जेटली राखवी, कलाचार स्कन्धविभागमा जइने रेखाओनो अंत करे छे अर्थात् स्कन्ध सुधी रेखा उंची जइने समाप्त थाय छे.
कलाओनो चार समान, सवायो, दोढो, पोणा वे गणो, बेगणो, सवाबेगणो, अढीगणो, पोणात्रणगणो, जणगणो, सवात्रणगणो, साढाप्रणगणो, पोणाच्यारगणो, च्यारगणो, सवाच्यारगणो, साढाच्यारगणो अने पोणापांचगणो; आम त्रिखंडादि १६-१६ रेखाओनी कलाओनो चार (चढाव) १६ प्रकारनो जाणवो जोईये.
प्रत्येक मूलरेखा समचारी होय छे, त्यारे ते पछीनी १५ रेखाओमां एक पछी एकमां ४-४ कलाओ वधती होवाथी ४ कलानी वृद्धिवाली 'सपादचारी' ८ नी वृद्धिवाली 'सार्धचारी, आदि नामो प्राप्त करे छे.
प्रथमा त्रिखंडाना प्रथम खंडमां ८, बीजा खंडमां ८ अने जीजा खंडमां पण ८ कलाओ लागे छे; आम १६ त्रिखंडाओना प्रथम खंडमां ८-८ कलाओ लागे छे.
प्रथमा त्रिखंडाना ३ खंडोनी २४ कलाओ वडे स्कन्ध २४ ठेकाणे भेदाय छ, द्वितीया त्रिखंडानी २७ कलाओ वडे २७ ठेकाणे, त्रीजीनी ३० कलाओथी ३० ठेकाणे स्कन्ध छेदाय छे, आम जे जे रेखाओना सर्व खंडोनी जेटली कलाओ होय तेटले
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