________________
प्रासाद-लक्षणम् ] छे, आ चतुष्खण्डा छे, एना च्यारे खंडोमां १२-१२ कलाओ लागे छ, अर्थात् ए पण समचार वाली छे, त्रिखंडानी जेम एनी पाछल पण बीजी १५ चतुखंडाओ छे, जे अनुक्रमे सपाद, सार्थ, पादोनद्वय आदि चार वाली छे; आ प्रमाणे प्रत्येक मूल रेखामा एक एक खंडनी वृद्धि थतां १६ मी 'अमृता' रेखा अढार खंडवाली बने छे.
मूल रेखाओमा जेम जेम नंबर वधे छे तेम तेम एमना पहेला खंडोमां ४-४ कलाओनी वृद्धि थाय छे, पहेली मूलरेखा अने एनी अनुवर्तिनी १५ रेखाओना पहेला खंडमां ८-८ कलाओ छे तो बीजी मूलरेखा अने तेनी जातिनी १५ रेखाओना पहेला खंडमां १२-१२ कलाओ छ, आम ४-४ नी वृद्धि थतां सोलमी 'अमृता' अने एनी जातनी १५ रेखाओना पहेला खंडामा ६८-६८ कलाओ उपजे छे अने अमृता वर्गनी छेल्ली रेखाना छेल्ला खंडमां ३२३ कलाओ उपजे छ, आ सोलमीनी सोलमी अर्थात् २५६ मी रेखाना बधा खंडोनी कलासंख्या ३५१९ नी थाय छे, आम आ बधी रेखाओनो कलाविस्तार अनेक लाखोनो संख्यामां छे, अने जेटला रेखाओना कला भेदो तेटला ज समच्छंदे शिखरना भेदो उपजे छे.
नागरी रेखाओ
उदय रेखाओसूत्ररेखोत्थिता रेखा, संख्यायां पञ्चविंशतिः । नामानि कथयिष्यामि, सव्यासादेर्यथाक्रमम् ॥३८५॥ सव्यासा शोभना भद्रा, सुरूपा सुमनोरमा। शुभा चैव तथा शान्ता, कौबेरी च सरस्वती ॥३८६॥ कौला च करवीरा च, कुमुदा पद्मिनी तथा । कनका विकटा चैव, रम्या च रमणी तथा ॥३८७॥ वसुन्धरा तथा हंसी, विशाखा नन्दिनी तथा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org