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प्रासाद-लक्षणम् ]
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सुरदुन्दुभि नामना करवा. द्वारमा प्रवेश करतां १ लो जमणा हाथे अने २ नंबरनो प्रतिहार डाबा हाथे आवे एवी रीते प्रदक्षिणा क्रमे बनाववा. आयुधो
आ वीतरागना प्रतिहारो अतिशय शांति आपनारा छे, माटे पूर्वादि दिशाओमां एमने अनुक्रमे प्रदक्षिणा क्रमथी स्थापवा, इन्द्रना जमणा हाथोमां फल अने वज्र, डावा हाथोमां अंकुश अने दण्ड; आ ४ आयुधो आपवां, अने एज जमणा हाथनां डाबामां अने डाबा हाथनां जमणा हाथोमां आपवाथी इन्द्रजयनुं रूप बनशे. एज रीते महेन्द्रना जमणा बे हाथोमां बे वज्रो तथा डावा वे हाथोमां फल अने दण्ड आपको, अने विजयना हाथोमां महेन्द्रथी अपसव्य क्रमथी एज आपयां. धरणेन्द्रना जमणा हाथोमां वज्र तथा अभय अने डावा हाथोमां सर्प अने दण्ड आपको, तथा एज आयुधो पद्मकना हाथोमां अपसव्य क्रमथी आपवां. सुनाभना जमणा हाथोमां फल अने वांसली तथा डावा हाथोमां वांसली अने दण्ड आपवो; एज आयुधो सुर दुंदुभिना हाथोमां अपसव्य क्रमथी आपवां.
(१) प्रतिमाओनां पदस्थानो
प्रासादना छन्दानुसारे चोरस, लंबचोरसादि गर्भगृह बनावीने तेना मध्यभागथी प्रारंभ करी २८ मंडलो बनाववा, इत्यादि आकारे गर्भगृहनी च्यारे भींतो तरक एकथी आगे वीजुं आम छेल्लुं २८ मंडल भींतोने अडकतुं आवशे, आ २८ मंडलो पैकीना सर्वना वचला १ ला मंडलमां शिव, २ जा मंडलमां हेमगर्भ, ३ जामां नकुलीश ४थामा सावित्री, ५मामां रुद्र, ६ठामां कार्तिकेय, ७मामां पितामह, मामां वसुदेव, ९मामां जनार्दन, १०मामां विश्वेदेव, ११ मे अग्नि, १२ मे सूर्य, १३ मे दुर्गा, १४ मे गणेश, १५ मे ग्रहो, १६ मे मातृकाओ, १७ मे गणो, १८ मे भैरव, १९ मे क्षेत्रपाल,
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