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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे २० मे यक्षराज, २१ मे हनुमान, २२ मे भृगु, २३ मे घोर, २४ मे दैत्य, २५ मे राक्षस, २६ मे पिशाच अने २७ मे पदे भूतोने स्थापन करवा. २८ मुं पद शून्य छे, त्यां कोई स्थापित थतुं नथी.
मंडलोमां देवोना स्थानोनो अतिदेशविष्णुना स्थाने उमादेवीने, ब्रह्माना स्थाने सरस्वतिने, मध्यमंडलमां सावित्रीने, अने सर्वमंडलोमां लक्ष्मीने स्थापित करी शकाय छे.
वीतराग (जिन) ने विघ्नराजना १४ मा मंडलमा स्थापवा, एम जिनशासनमां कहेल छे. मातृमंडलना स्थाने सर्वदेवीओ, बेठी अने उभी विष्णुनी मूर्तिओ, जलशायी विष्णु अने वाराह; ए सर्वने विष्णुना मंडलमा स्थापवा. विष्णुनां सर्व रूपोने ९मा मंडलमा स्थापवां, कल्की अने गमने वाराहना पदमां स्थापवा, अर्ध नारीश्वरने रूद्रना स्थाने, हरिहर उमानी मूर्तिने विष्णुना पदमां स्थापवी. मिश्रमूर्तिने (त्रि पुरुष-हरिहर-ब्रह्मानी मूर्तिने ) ७मा ब्रह्माना स्थानमां, चंद्रसूर्य-पितामहनी मिश्रमूर्तिने भास्करपदमां, वेदोने ब्रह्माना पदमां अने ऋषिओने भास्करपदमां स्थापन करवा, आ उपरांत प्रन्थोमां जे देवो कहेला छे ते जेना सानिध्यमां होय तेना परिकर रूपे सर्वकाले तेना ज पदमां स्थापित करवा.
स्पष्टीकरणमंडलोनु तात्पर्य प्रासादना गर्भगृहमा देवप्रतिमाने स्थापन करवा योग्य स्थाननो निर्देश करवानुं छे, जे देवालयना गर्भगृहनो जेवो आकार होय तेज आकारनां मध्यथी कल्पी एकने फरतुं बीजें, बीजाने घेरतुं त्रीजु, त्रीजाने चोमेर वींटतुं चोथुः आम २८ मंडलो कल्पवां अने मध्यमंडलथी द्वार सामेनी भोंत तरफ बीजा जीजा चोथा यावत् २८मा मंडल सुधी निशानो करवां, पछी स्थापनीय देवर्नु मंडल ज्यां आवतुं होय त्यां तेना गर्ने लीटी खेची ते लीटी
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