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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे शान्ता मनोहरा चैव, विजया पद्मिनी तथा । वीराऽऽनन्देति षट्तारा, नित्यं कल्याणकारिकाः ॥१८१॥
भा०टी०-गृहस्वामीना नक्षत्रथी गृहनक्षत्रपर्यंत गणीने नक्षत्र संख्याने ९ थी भागवी, शेष रहे ते गृहस्वामीनी तारा कही छे. शेष ? रहे तो शान्ता, २ रहे तो मनोहरा, ३ रहे तो क्रूरा, ४ रहे तो विजया, ५ रहे तो कलिका, ६ रहे तो पद्मिनी, ७ रहे तो राक्षसी, ८ रहे तो वीरा अने ९ रहे तो नवमी आनन्दा नामनी तारा जाणवी. १ 'शान्ता' नित्य शान्ति करनारी, २ 'मनोहरा' मनने प्रसन्नता देनारी छे. ३ 'क्रूरा' चौर अग्नि आदिनो भय करनारी होइ विद्वानोए वर्जित करी छे. ४ 'विजया' जय कल्याण करनारी, ५ 'कलिका क्लेश देनारी, ६ पद्मिनी' सुख अने महान तीर्थना फलने देनारी छे. ७ 'राक्षसी तारा नाम प्रमाणे ज घोर राक्षसी छे अने रात्रिना सनयमां भय देनारी छे, ८ 'वीरा' सौम्य अने भोग सुख देनारी छे, ज्यारे ९ 'आनन्दा' आनन्द करावनारी छे. आम नव प्रकारना आकारनी ताराओ कही, ज्यारे चन्द्रमा क्षीणबली होय त्यारे तारा बल देनारी होय छे. क्रूरा कलिका अने राक्षसी आ त्रण ताराओ शुभ कामोमां वर्जवी जोइये. शान्ता, मनोहरा, विजया, पद्मिनी, वीरा अने आनन्दा; आ ६ ताराओ नित्य कल्याण करनारी छे.
अधिपतिकरराशिहतोच्छाये, भागैर्हते ततोऽष्टभिः । अधिपतिर्भवेच्छेषं, नाम्ना च सदृशं फलम् ॥१८॥ वितथः कनकश्चव, धूम्रकोऽवितथस्वरः । बिडालविजयौ चैव, दान्तः कान्तस्तथा मृगः ॥१८३॥ विषमायो भवेच्छस्त, आयहीना व्ययाः शुभाः। आधिपत्यं समं शान्तं, शुभदं सवेदा नृणाम् ॥१८४॥
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