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[ कल्याण-कलिका - प्रथमखण्डे
चोथा प्रकारे प्रासादोदय
आ उदयमानने ३ जा प्रकारना उदयमाननी साथे थोडोक मतभेद छे, १ थी ३ हाथ सुधीनुं मान १ ला २जा मानने मलतुं छे, ४ हाथथी एनुं मान जुदुं पडे छे. ४ हाथे४ हाथ १ आंगल, ५ हाथे ५ हाथ, ६ हाथे ५ हाथ २२ आंगल, ७ हाथे ६ हाथ १७ आंगल, ८ हाथे ७ हाथ ८ आंगल, ९ हाथे ७ हाथ १९ आंगल, १० हाथे ८ हाथ, १५ हाथे १० हाथ ६ आंगल, २० हाथे १२ हाथ १२ आंगल, २५ हाथे १४ हाथ १८ आंगल, ३० हाथे १७ हाथ, ३५ हाथे १९ हाथ ६ आंगल, ४० हाथे २१ हाथ १२ आंगल, ४५ हाथे २३ हाथ १८ आंगल, अने ५० हाथे २५ हाथनो उदय थाय छे.
पांचमा प्रकारे प्रासादोदय
१ थी ५ सुधी विस्तार अने उदय समान होय छे, ६ थी १३ हाथ सुधी १२ आंगलनी वृद्धि करवी, १४ थी २१ हाथ सुधी ११ आंगलनी अने २२ थी ५० सुधी हाथ प्रति १०-१० आंगलनी वृद्धि करवी.
आ मत प्रमाणे १३ हाथना प्रासादे ९ हाथनुं, २१ हाथे १२ हाथ १६ आंगलनुं अने ५० हाथे २५ हाथ २ आंगलनु प्रासादे उदयमान थाय छे.
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छठ्ठा प्रकारनो प्रासादोदयफेरु ठक्कुरना मते
इगदुतिच उपण हत्थे, पासाइ खुराउ जा पहारथरो । नवसन्त्तपणतिएगं, अंगुलजन्तं कमेणुदयं ॥ २४५ ॥ इच्वाइ खबाणते, पडिहत्थे चउदसंगुलविहीणा । इअ उदयमाण भणिअं, अओ य उडूढं भवे सिहरं ॥ २४६ ॥
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