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प्रासाद-लक्षणम् ] दादि वास्तुनी जन्मतिथि जाणवी, आ तिथिओनां नामसमान फल होय छे, वास्तुमां बीज, आठम, बारस वर्जित छ, तिथिना आंकने ९ थी गुणी ने ७ नो भाग देवाथी वास्तुनो सूर्य आदि जन्मवार आवे छे.
शुभ अङ्गोनी अधिकताथी वास्तुनी स्थिरताआय-व्ययांश-नक्षत्र,-तारा-चन्द्र-मैत्र्यादिकम् । प्रीतिरायुश्च मृत्युश्च, चिरं नन्दति चेच्छुभाः ॥१८८॥
भा०टी०-आय, व्यय, अंशक, नक्षत्र, तारा, चन्द्र, राशिमैत्री, ग्रहमैत्री, आयुष्य अने मृत्युकारी तत्व; आ सर्व वस्तुओ शुभ होय तो ते घर घणा काल पर्यन्त स्थिर रहे छे.
केटलां अङ्गो शुभ होय तो सारांत्रिभिः श्रेष्ठैस्तु श्रेष्ठं स्यात्, पञ्चभिश्चोत्तमोत्तमम् । सप्तभिः सर्वकल्याणं, नवभिर्जयसंपदः ॥१८९॥
भान्टी०-३ श्रेष्ठ अंगो वडे वास्तु श्रेष्ठ गणाय छे, ५ श्रेष्ठ अंगो होय तो उत्तमोत्तम, ७ उत्तम अंगो बडे सर्वने कल्याणकारक अने ९ उत्तम अंगोवालं वास्तु होय तो तेना स्वामीने जय अने संपत्ति आफ्नारं थाय छे.
वास्तुमा शुं शुं न लेवु ?न षट्काष्टकं त्रिकोणं, द्वादशी द्वितीयाष्टमी । न चाष्टवादशश्चन्द्र-स्तारा त्रि-पञ्च-सप्तमी ॥१९॥ न द्वितीयांशकं कुर्याद् , न वा चाष्टममायकम् । न चन्द्रोऽग्रे च पृष्टौ च, नववास्तुककर्मणि ॥१९॥
भा०टी०-नविन वास्तु निर्माण कार्यभां षडष्टक तथा नवपंचम राशिफूट न लेवू; बीज, आठम, बारस तिथि न लेवी; आठमो,
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