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__ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे नथी, कोइ ४, कोइ ५, कोइ ८ अने कोइ ९ शिलाओनी स्थापनानुं विधान करे छे. जेओ ४ अथवा ८ शिलाओनुं विधान करे छे, तेमनो आशय कूर्मने प्रथम नीचे स्थापी पछी वास्तुभूमिनो खाडो शुद्ध माटी अने अणघड पत्थराओ वडे पूरी लगभग एक चतुर्थांश जेटलो ते खाली रहे त्यां चार विदिशाओमा ४ अथवा चार दिशाओ अने चार विदिशाओमा मली ८ शिलाओ प्रतिष्ठित करवी एवो छे.
जेओ ५ अथवा ९ शिलाओ प्रतिष्ठित करवानो मत धरावे छे तेमनी मान्यता कूर्मशिलानी साथे ज ४ अथवा ८ शिलाओ पण प्रतिष्ठित करवानो छे. आम शिलासंख्यानी वाचतमा मुख्य पक्ष बे छे ५ शिलावादी अने ९ शिलावादी.
चार तथा ५ शिलाओनी बावतमा विश्वकर्मप्रकाशकार नीचे प्रमाणे व्यवस्था आपे छे
यो विधिगृहनिर्माणे, शिलान्यासस्य कर्मणि प्रासादेषु स विज्ञेय-श्चतस्रस्तु शिलास्तथा ।। १ ।।
भा०टी०-गृहनिर्माणमा शिलान्यासविषयक जे विधि छे, तेज विधि प्रासादो 'देवालयो' मां पण होय छे. मात्र भेद एटलोज होय छे के प्रासादवास्तुमा शिलाओ ८ होय छे. शिलाओगें स्वरूप-.
जे शिला विधिपूर्वक प्रतिष्ठित करवानी होय ते देखावडी, रंग रूपमा आंखने सुन्दर लागे एवी, डाघ, अंग, पीलक के कालक विनानी अने जे जातिना पत्थरखें घर अथवा देवालय बनावधानो निर्णय को होय तेज जातिनी अथवा तेथी उच्च जातिनी होवी जोइये. कदापि घर के देवालय इंटोन बनायवु होय तो ' इष्टकारूपशिला स्थापन करी शकाय छे. छतां ते इंट पण सारी पाकेली, राती प्रमाणयुक्त अने सुन्दर होवी जोइये. घाणी जूनी, काळी, काळा डाघ
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