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वास्तुमण्डलविन्यास-लक्षणम् ]
क्षेत्राकृतिर्वास्तुरिहार्चनीयः
शास्त्रना आ नियम प्रमाणे वास्तुभूमिनो जेवो आकार हशे तेवोज आकार वास्तुमण्डलनो थशे. वास्तुमण्डल आलेखतां अनुक्रमे ६४ पदमां ९ अने ८१ पदमा १० ऊभी आडी समानान्तर रेखाओ खंचवी. तेमां पूर्वपश्चिमायत रेखाओ पश्चिमथी पूर्व तरफ अने दक्षिणोतरायत रेखाओ दक्षिणथी उत्तर तरफ लइ जवी. जो के वास्तुमण्डल बीजा पण अनेक छे, पण निर्वाणकलिकाकारे प्रासादवास्तु ६४ पदनो अने गृहवास्तु ८१ पदनो पूजवानुं विधान कर्तुं छे. एटले अमो आबे वास्तुमण्डलोनी ज विन्यासविधि अहींयां जणावीशुं.
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( १ ) प्रासादवास्तुमण्डल
प्रासादवास्तुनी भूमिमां पूर्वाग्र उत्तराय ९-९ रेखाओ खचीने तेना ६४ विभागो कोष्टकात्मक करवा.
तेना ईशानकोणथी नैऋत्य अने आग्नेयकोणथी वायव्य पर्यन्त तिरछी लीटियो चवी. आ तिर्यक रेखाओ 'ऊर्ध्ववंश' कहेवाय छे.
एपछी ४ द्विपदगामी अने ४ षट्पदगामी एम ८ रज्जुओनो मां विन्यास करो. मर्मस्थानो जागी बाह्य अभ्यन्तर कोष्टकोमां नीचे लख्या प्रमाणे देवताओनो विन्यास करवो.
ईशानकोणार्धमा 'ईश' लखीने पछीना ६ कोष्टको पैकीना प्रत्येकमां अनुक्रमे 'पर्जन्य, जय, माहेन्द्र, रवि, सत्य, अने भृश ए ६ नामो आलेखवा.
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अग्निकोणना वे कोष्टकार्थोमां क्रमशः 'व्योम' अने 'पावक ' लखी ते पछीना ६ कोटकोमां अनुक्रमे 'पूपा, वितथ, गृहक्षत, यम, गन्धर्व अने भृंग' ए ६ देवोनो विन्यास करवो.
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