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शल्योद्धार - लक्षणम् ]
शल्यरहित जाणवी. आ वस्तु नीचेना उदाहरणथी समजाशे. शल्यप्रश्नमां कोइए 'संतरा' फलनुं नाम कां, संतरानो 'स' वर्गनो त्रीजो वर्ण अने एनी 'अं' मात्रा, वर्गनो १५ पंदरमो स्वर होइ, वर्णोंक ३ नो बमणो ६ अने मात्रांक १५ नो चार गुणो ६० थयो. बन्नेने जोडतां थयेल अंक ६६ ने ९ नो भाग आपतां शेष ३ ए विषमांक रह्यो. आथी जणायुं के भूमिमां शल्य छे अने उत्तर दिशाना खण्डमा छे, केमके 'स' नुं स्थान उत्तर खण्ड छे, एज प्रमाणे कोइ पण प्रश्नअक्षरनां वर्णो अने मात्रांक उपरथी शल्य स्थाननो निर्देश करवो. (६) प्रश्न लग्नद्वारा शल्यज्ञानप्रश्नविद्यामां लखे छे
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चतुष्कोणं गृहं कल्प्यं, त्रिरावृत्तं लिखेच भम् । यत्र चन्द्र निधिस्तत्र शल्यं यत्र रविर्मतम् ॥ २१ ॥ शुभदृष्टियुतश्चन्द्रो, निधिः प्राप्यः पुरातनः । सूर्येऽप्येवं सदा वाच्यं, चण्डेश्वरनृपोदितम् ॥ २२ ॥ भा० टी० - चोरस घरने चार खूणामां कापी चार भाग करवा. लग्नराशिथी मांडीने त्रण आवृत्तिओथी १२ राशिओ ४ भागोमां लखवी अने जे ग्रह जे राशिमां होय ते ते राशिवाला कोठामां लखवा अने जोवु . शुभयुक्त अने शुभदृष्ट चन्द्र जे कोठामां होय त्यां धन छे एम कहे तथा अशुभयुत अने अशुभदृष्ट सूर्य ज्यां होय त्यां शल्य छे एम कहेवुं. ए विषय नीचेना उदाहरणथी समजी शकाशे
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सं. २००३ ना आसो शुदि १० ना दिवसे कोइए पोतानी वास्तुभूमिमां धन अथवा शल्य होवा विषे प्रश्न कर्यो. सूर्योदयात् प्रश्नेष्टकाल ३ घडी ३३ पलनो हतो. एटले वर्तमान लग्न 'तुला आव्युं, चोखंडा घरमां तुलाथी मांडी राशिओ अने ग्रहो लखतां लग्नकुंडली अढारमा पृष्ठनी शरुआतमां आपी छे ते प्रमाणे बनी,
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