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शल्योद्धार-लक्षणम् ]
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घरना ते दिशाभागमां ग्रहस्वामिक द्रव्य कहेतुं अने जे भागमां पापग्रहोपडया होय, घरना ते दिशाभागमां शल्य कहेवुं.
आ ग्रन्थना मते पूर्वोक्त लग्नकुंडली नीचे प्रमाणे बनावीने परिणाम कही शकाय । प्रश्नेष्ट ३-३३
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लग्नचक्र
शु. गु. मं. बु.
६ सू.
४ श
२ रा.
आ कुंडलीमा सौम्यग्रहनी स्थिति पूर्वदिशा तेमज उत्तरदिशामां दृष्टिगोचर थाय छे. एटले ए दिशाओमां शल्य तो संभवतुं नथी छताँ द्रव्यनुं अस्तित्व पण संभवित नथी. केमके चन्द्र उपर शनि मंगलनी पूर्ण अने सूर्य राहुनी द्विपाद दृष्टि छे. बुध, गुरु अने शुक्र पण मंगलयुक्त छे अने शनि, राहुद्वारा द्विपाद दृष्टिए दृष्ट छे. एथी जणायुं के पूर्व उत्तर दिशाओमां शल्य नथी, तेम द्रव्य पण नथी. हवे पश्चिम दक्षिण दिशाओनो विचार करीये. सूर्य पूर्वाग्नेयकोणमां छे. शनि दक्षिणमा छे अने राहु पश्चिमनैर्ऋत्य भागमां छे. आ ग्रहस्थिति दक्षिणभागमां शल्यनुं सूचन करे छे. मध्यदक्षिणमां बेठेल शनिने चन्द्र पूर्णदृष्टिथी देखे छे अने बुध गुरु शुक्रनी पण एना उपर एकपाद दृष्टि छे, एथी दक्षिणमां शल्यनो संभव जणातो नथी. राहु उपर मंगलनी पूर्णदृष्टि छे खरी पण साथै ज बुध गुरु शुक्र एने त्रिपाद -
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