________________
२४
[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे नीकळे त्यारे त्यां पण निशान करो अने पछी बन्ने निशानो वच्चे लीटी दोरी तेनी उपर दक्षिणोत्तर लंब रेखा दोरो, एटले उत्तर दक्षिण दिशा सिद्ध थशे. स्फुटकरण ग्रन्थन दिशासाधन. ध्रुवओळंबानी रेखामा उत्तर दक्षिण दिशा अने ते रेखाथी थता मत्स्यना मुख अने पुच्छना स्थाने अनुक्रमे पूर्व पश्चिम दिशा सिद्ध थशे. आ विषयनें नीचेना पद्यमा प्रतिपादन छेध्रुवलम्बकरेखाया, रेखान्तः सौम्ययाम्यहरितौ स्तः। तन्मत्स्यपुच्छमुखतः, पश्चिमपूर्वाभिधे विद्यात् ॥४॥
४. कीलिकासूत्र-लक्षण चतुर्वर्णविभागानां, यद् हितं कीलिकादिकम् । तदेव वेश्म-चैत्यादि-निवेशादौ नियोजयेत् ॥२१॥
भाटी-चार वर्णों पैकीना जे जे वर्णने जे जे प्रकारनी कीलिका (खीली-खूटी) अने सूत्र हितकारक जणावेल छे, ते प्रकारनी कीलिका-सूत्रनो घर तथा चैत्य आदिना प्रारंभमां उपयोग करवो. भूमिना परिग्रह प्रसंगे ग्राह्यभूमिना चार खूणाओमां खीलियो ठोकी सूत्रो बांधीने भूमिनी चतुस्सीमा निश्चित करवा जणाव्यु छे. त्यां ए प्रश्न उपस्थित थवो संभवित छे के ते खीलियो शानी होवी जोइये ? ते लंबाईमां केटली अने आकारमां केवी होवी जोइये? वळी तेमां बांधवानी दोरी केवा प्रकारनी होय तो सारी गणाय ? आ बधी वातोनो शास्त्रमा खुलासो करेल छे. जिज्ञासुगणनी जिज्ञासापूर्ति करवाना हेतुथी अमो तेनो सारांश नीचे आपीये छीये. ए विषयमा सूत्रधारमंडन नीचे प्रमाणे प्रतिपादन करे छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org