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शल्योद्धार-लक्षणम् ] __ जे भूमि समतल समचोरस, लंबचोरस, खाडा खांचा विनानी, मजबूत, स्वच्छ अने निःशल्य होय, ज्यां जेनुं चित्त प्रसन्न थतुं होय तेज भूमि अभ्युदयकारिणी होय छे.
त्रिकोण, पंचकोण अने षट्कोणआदि आकारवाली, दिग्मूढ, पोची, उद्वसित अने उद्वेगकारिणीभूमिमां घर के देवमन्दिर बनावनारने शान्ति प्राप्त थती नथी..
२. शल्योद्धार-लक्षण सुलक्षणेऽपि भूभागे, शल्यादिदोषदृषिते । नोदयस्तत्र तेनादौ, शल्यमुद्धियते बुधैः ॥१९॥
भा०टी०-भूमिभाग सुलक्षणवान् होवा छतां ते शल्यादिदोषयुक्त होय तो त्यां वसवाथी अभ्युदय थतो नथी, ते कारणथी विद्वानो प्रथम भूमिगत शल्यनो उद्धार करे छे..
विधिथी भूमिपरिग्रह अने खातविधि कर्या पछी ते वास्तुभूमि सशल्य छे के निःशल्य छे तेनी तपास करवी. शल्यज्ञानना अनेक प्रकारो छे, पण ते सर्वनी चर्चा करवा जतां ए विषय जटिल बनवानो भय छे. एटले मात्र ६ प्रकारो वडे ज शल्यनो विचार करवो योग्य धारिये छीये.
(१) वास्तुभूमिमां ६४, ८१ के १०० पदोनी कल्पना करी ते ते पदस्थित चैत्यकारक गृहपतिनी शारीरिक चेष्टाद्वारा,
(२) परिगृहीत भूमिमां शियाल, कूतरा आदिना प्रवेश उपरथी, (३) प्रश्नकालमा प्राणियोना शब्दश्रवणद्वारा, (४) अ, क, च, ट, त, प्रमुख प्रश्नोत्तरवर्णोद्वारा, (५) प्रश्नांकद्वारा अने (६) प्रश्नलग्नद्वारा.
१ चैत्यकरावनार गृहस्थ परिगृहीत भूमिर्मा वास्तुपूजन आदि कार्यों करतांशुं शुं शारीरिक प्रवृत्तियो-चेष्टाओ करे छे, तेनुं सूत्रधारे
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