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आकांक्षा के रूप में -
सामान्यतया; इच्छा, आकांक्षा, अभिलाषा आदि पर्यायवाची ही माने जाते हैं, फिर भी इच्छा और आकांक्षा में सूक्ष्म दृष्टि से एक अन्तर माना जा सकता है। सामान्यतः इच्छा का सम्बन्ध किसी वस्तु या विषय से होता है, अतः इच्छा का सम्बन्ध परद्रव्य से है। वह व्यक्ति को पर से जोड़ती है। जैनदर्शन की दृष्टि से कहें, तो परद्रव्यों की चाह ही इच्छा है। इच्छा का सम्बन्ध हमेशा 'स्व' से भिन्न परद्रव्य से होता है। यह, दूसरे की चाह है, अंग्रेजी में हम इसे Will कहते हैं, हिन्दी में इसे चाह भी कहा जा सकता है। आकांक्षा किसी कमी की अनुभूति है और उसके माध्यम से हम उस कमी की पूर्ति चाहते हैं। आकांक्षा का सम्बन्ध किसी वस्तु की चाह न होकर वस्तु की कमी की अनुभूति है। अंग्रेजी भाषा में Will तथा Want में जो अंतर है, वही अंतर इच्छा और आकांक्षा में माना जा सकता है। आकांक्षा Want है, इच्छा Will है। सूक्ष्म दृष्टि से कहें, तो आकांक्षा इच्छा की जनक है। व्यक्ति किसी कमी की अनुभूति करता है, तब वह आकांक्षा कहलाती है और जब उस कमी की पूर्ति की चाह उत्पन्न होती है, तो वह इच्छा का रूप ले लेती है। भूख का लगना आकांक्षा है और खाने के सम्बन्ध में निर्णय करना इच्छा है। इस प्रकार सूक्ष्म रूप से कहें, तो आकांक्षा हेतु (कारण) है और इच्छा कार्य (Function) है।
संज्ञा व्यवहार के प्रेरक-तत्त्व के रूप में -
आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि से यदि हम विचार करें, तो संज्ञा को व्यवहार के प्रेरक-तत्त्व के रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है, क्योंकि हम संज्ञा के विभिन्न प्रकार के वर्गीकरण, जैसे चतुर्विध वर्गीकरण 46, दशविध वर्गीकरण 4. षोड़शविध वर्गीकरण में से किसी भी वर्गीकरण की दृष्टि से विचार करें, तो यह
46 समवायांग - 4/4 47 प्रज्ञापना, पद - 8
48 अभिधानराजेन्द्र, खण्ड-7, पृ. 301
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