________________
XXV
भूमिका इति तक आप दोनों (प्रो. सत्यरंजन बनर्जी, मुनिश्री दुलहराजजी स्वामी) के कशल मार्गदर्शन का ही परिणाम है। आपके स्नेहिल व्यवहार एवं कार्य करने के प्रति उत्साहित करने की तकनीक से मैं अभिभूत हूँ। आशा है ऐसा अनुग्रह मुझे भविष्य में भी मिलता रहेगा।
माननीय कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञा, पूर्व कुलसचिव प्रो. जे. पी. एन. मिश्रा एवं वर्तमान कुलसचिव श्री परमेश्वर शर्मा आदि सभी अधिकारियों एवं समस्त विश्वविद्यालय परिवार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ, जिनसे मुझे समय-समय पर अमूल्य सुझाव प्राप्त हुए।
मैं अपने शोध-निर्देशक प्रो. जगतराम भट्टाचार्य, विभागाध्यक्ष संस्कृत एवं प्राकृत विभाग की ऋणी हूँ, जिनके कुशल मार्ग-निर्देशन में मेरा शोधकार्य पूर्ण हो सका है। साथ ही इसी विभाग के सह आचार्य डॉ. जिनेन्द्र जैन एवं सहायक आचार्या डॉ. समणी संगीतप्रज्ञा के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ, जिनकी सहायता से मुझे शोधकार्य में सुविधाएँ प्राप्त होती रही हैं।
___ पारिवारिक जनों को इस अवसर पर स्मरण करती हूँ जिनके सहयोग एवं स्नेहिल वचनों के बिना यह शोधकार्य पूर्ण करना संभव नहीं था।
मेरे समस्त सहपाठी डॉ. लोपामुद्रा भट्टाचार्य, डॉ. सूरजमल राव, डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज, डॉ. सुमत जैन, डॉ. पूजा शर्मा, गौरव शर्मा, नरेश जैन, शोभा चोपड़ा, प्रियंका जैन आदि सभी सहपाठियों का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिनके प्रति मैं कृतज्ञ हूँ।
केन्द्रीय पुस्तकालय (वर्धमान ग्रंथागार) के समस्त अधिकारी एवं कर्मचारियों-महिमाजी, किरणजी एवं तिर्था बहादुर घले आदि का मुझे अध्ययन कार्य में पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहा है। अतः उनके प्रति मैं कृतज्ञ हूँ।
अन्ततः श्री मोहन कम्प्यूटर्स को धन्यवाद देती हूँ, जिन्होंने बड़े धैर्य के साथ मेरे शोध-प्रबंध में प्रयुक्त संस्कृत, प्राकृत एवं पाली भाषा को सावधानी पूर्वक कम्प्यूटराइज्ड कर उसे पूर्णता प्रदान की। मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ।
___ मैं जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय), लाडनूं के प्रति कृतज्ञ हूं कि जिन्होंने इस ग्रन्थ को प्रकाशित करना स्वीकार किया।