Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ Xvi जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद अमूल्यचन्द्र सेन का लघुकाय ग्रन्थ The Schools and Sects in Jain Canonical Literature, Vishva Bharati, Santiniketan, 1931 में प्रकाशित हुआ, जिसमें जैन आगम ग्रन्थों के उल्लेखनीय मतवादों, जैसे-आजीवक मत, ब्राह्मण मत, सांख्य एवं योग, शाश्वतवाद, पौराणिक एवं औपनिषद मत, आत्मषष्ठवाद, तज्जीव-तच्छरीरवाद, नास्तिकवाद (पंचभूतवाद), बौद्ध मत (पंचस्कन्ध एवं चातुर्धातुकवाद) और कुछ छोटे मतों का अन्य परम्पराओं से तुलना करते हुए संक्षिप्त विवेचन किया गया। सम्पूर्ण ग्रन्थ प्रस्तुत शोध से सम्बद्ध है। राहुल सांकृत्यायन का दर्शन-दिग्दर्शन ग्रन्थ जो 1944 में किताब महल, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ इसमें भी विभिन्न भारतीय एवं यूनानी मतवादों की चर्चा है। ___A.L. Basham का History and Doctrines of the Ajivikas यह सर्वप्रथम London, 1951, reprinted byMotilal Banarasidass Publishers Pvt. Ltd., Delhi, 1999 में प्रकाशित हुआ। इस ग्रन्थ में नियतिवाद के इतिहास और सिद्धान्तों का महत्त्वपूर्ण विवेचन है। इसके प्रथम खण्ड में आजीवकों का इतिहास में उस समय के छः प्रमुख धार्मिक नेताओं जैसे पूरणकश्यप, मंखलिगोशाल, अजितकेशकम्बल, पकुधकच्चायन, संजयवेलट्ठिपुत्त, निगंठनातपुत्त का संक्षिप्त विवेचन, गोशाल के पूर्व अधिकारी, पूर्वज अथवा गोशाल के पूर्व आजीवक नेता, (नन्द वच्छ और किस संकिच्च), गोशाल के अन्तिम दिन, प्रारम्भिक आजीवक संगठन, नन्द और मौर्यकाल में आजीवक, बाद के समय (Later Times) में आजीवक, दक्षिण में आजीवकों का विस्तार, का उल्लेख किया है। द्वितीय खण्ड में आजीवकों के सिद्धान्तों का विस्तार से वर्णन है, जिसमें आजीवक धर्मशास्त्र, नियतिवाद, आजीवक सृष्टि (लोक), आजीवकों के अन्य सिद्धान्त और अन्त में निष्कर्ष इन विषयों पर विद्वत्तापूर्ण विवेचन किया है। जोगेन्द्र चन्द्र सिकदर द्वारा लिखित Studies in the BhagawatiSutra 71405 The Research Institute of Prakrit, Jainology & Ahimsa, Muzaffarpur, Bihar से 1964 में प्रकाशित हुआ है। लेखक ने भगवती के परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, अन्य सम्प्रदायों के नेता एवं उनके सिद्धान्त, भगवान् महावीर का जीवन, राजाओं का वर्णन, सृष्टि विज्ञान, भूगोल, तत्त्वमीमांसा आदि जैन दार्शनिक विचार तथा साहित्य की दृष्टि से मूल्यांकन किया है।

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