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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद the Jainas नाम से ही 1999 में संपादित किया। इसमें श्वेताम्बर आगम परम्परा के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला गया है।
Walter Schubring chat Das Kalpasutra, die alte Sammlung Jinistischer Moenchsvor schriyten (The Kalpasutra the Ancient collection of Rules for Jain Monks) जिसका प्रकाशन Leipzig, से 1905 में हुआ। इस ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद Indian Antiquary से 1910 में प्रकाशित हुआ।
Josof Deleu ने Viyāhapannatti (Bhagvai) के महत्त्वपूर्ण अंशों पर विशद समीक्षा की है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन 'De Tempel' Tempelhot 37, Brugge (Belgie) से 1970 में हुआ। जिसका पुर्नमुद्रण Motilal Banarasidass Publishers Pvt. Ltd., Delhi, द्वारा 1996 में हुआ। इसमें भी आगम युग के विभिन्न मतों पर प्रकाश पड़ता है।
___Hermann Jacobi ने आचारांग और कल्पसूत्र एवं उत्तराध्ययन और सूत्रकृतांग-इन चार आगमों का अनुवाद किया जिनका प्रकाशन Sacred Books of the East नामक सिरीज में Vol-22 (1884), Vol-45 (1895) हुआ। इनमें आगम युग के दार्शनिक मतवादों का गहनता से उल्लेख हुआ है।
MaxMüller T The Six Systems of Indian Philosophy, London, 1889 में प्रकाशित हुआ जो बाद में भारत से 1919 में प्रकाशित हुआ। आंग्ल भाषा में लिखित इस ग्रन्थ में भारतीय दर्शन की विभिन्न परम्पराओं के ग्रन्थों का परिचय देते हुए भारतीय दर्शन की प्रमुख छः प्रणालियाँ-मीमांसा (पूर्व और उत्तर दोनों), सांख्य, योग, न्याय और वैशेषिक का विशद् वर्णन किया है। इसकी भूमिका में चार्वाक लोकायत मत की विस्तृत समीक्षा है। जो इस शोध के द्वितीय अध्याय पंचभूतवाद से संबंधित है। साथ ही दर्शन की छः प्रणालियों में सांख्यदर्शन, अकारकवाद एवं आत्मषष्ठवाद से सम्बद्ध है।
सुरेन्द्रनाथ दासगुप्ता की History of Indian Philosophy, Cambridge से 1922 में प्रकाशित हुई। अंग्रेजी भाषा में लिखित यह ग्रन्थ पांच भागों में विभाजित है, जिसके प्रथम भाग में वेद और ब्राह्मण दर्शन, प्रारम्भिक उपनिषदें, भारतीय दर्शन प्रणाली का सामान्य विवेचन, बौद्ध, जैन, कपिल एवं पातंजल सांख्य (योग), न्याय वैशेषिक, मीमांसा तथा शंकर वेदान्त दर्शन के