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भूमिका
xiii शब्दों का प्रयोग है, जैसे-आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवती इत्यादि।
यह शोध मुख्यतः जैन आगमों पर आधारित है किन्तु समकालीन होने की वजह से बौद्ध त्रिपिटकों का इसमें यत्किंचित् रूप से उल्लेख हुआ है। उसके मूल सन्दर्भ के लिए जिन प्रकाशनों का उपयोग लिया, उन पालि ग्रन्थों का पालि में ही नाम यथावत् रखा है, क्योंकि वे इसी नामों से ज्यादा प्रसिद्ध या प्रचलन में हैं। इसके अतिरिक्त पालि ग्रन्थों के नाम संस्कृत या हिन्दी में प्रायः नहीं लिखते हैं अथवा प्रचलन में नहीं हैं। इसलिए पालि ग्रंथों का नाम पालि भाषा में ही यथावत् रखा है।
ग्रंथ-सूची में भी विषयानुसार जैसे-जैन आगम एवं व्याख्या ग्रन्थ, आगम बाह्य जैन ग्रन्थ, पालि-ग्रन्थ, ब्राह्मण (वैदिक, सूत्र, महाकाव्य, पुराण और व्याकरण) ग्रंथ, दार्शनिक ग्रन्थ, अन्य ग्रन्थ आदि-आदि क्रम से ग्रंथों को निर्धारित कर रखा है, उसमें भी अंग्रेजी (अंग्रेजी मूल, अनुवादित या संपादित
आदि) के ग्रंथों को पृथक् रखा है। उप-अनुसंगी प्रमाण में भी सामान्य आधुनिक ग्रन्थ, कोश/सन्दर्भ ग्रन्थ इस क्रम से संयोजित किए हैं। समग्र ग्रन्थ-सूची वर्णमालाक्रमानुसार (Alphabatically) से योजित की है।
___ आगम युग के विभिन्न मतवादों को लेकर प्रायः शोधकार्य नहीं हुए हैं। प्रस्तुत विषय पर जहाँ तक मेरी जानकारी है, स्वतन्त्र रूप से कोई कार्य नहीं हुआ था। कुछ ग्रन्थों में बहुत संक्षिप्त रूप से विभिन्न मतवादों के संक्षिप्त विवरण मिलते हैं। उन आगमों तथा उन पर हुए समीक्षात्मक अनुशीलनों एवं प्रस्तुत शोध से सम्बन्धित मतों पर हुए पूर्ववर्ती कार्यों का संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है
A. Weber का जर्मन ग्रन्थ Uber die heligion Schriften der Jainas (on the Holy scriptures of the Jainas) जिसका प्रकाशन Indische Studien, Vol.- XVI, 1883, XVII, 1885 में प्रथम बार हुआ। इसमें श्वेताम्बर आगमों पर विस्तृत चर्चा की है। इसमें आगम ग्रन्थों में जो मतवाद मिलते हैं उनका भी उल्लेख है। इस ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद Indian Antiquary Vols-XVII, XXI 1888-92 में Sacred Literature of the Jainas नाम से अनुवाद हुआ। इस ग्रन्थ का पुनर्मुद्रण गणेश ललवानी और सत्यरंजन बनर्जी ने Sacred Literature of