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भूमिका
___ इस शोध में ग्रंथकारों, आचार्यों या ग्रन्थ के समय के सम्बन्ध में उनकी प्रायः निश्चित तिथि (Fixed Date) नहीं दी गई है। उनकी शताब्दी के अनुसार तिथि उल्लेखित है।
मेरा यह पूर्ण प्रयास रहा कि मूल ग्रन्थों का अनुसरण अधिक प्रामाणिकता के साथ किया जाए, ताकि विवेचन पूर्ण प्रामाणिक हो। अतः मैंने इस शोध-प्रबन्ध में लगभग हर मूल सन्दर्भ को देने का प्रयत्न किया है, जिन्हें ग्रन्थ-सूची से पूर्व टिप्पण (Notes and References) बिन्दु के अन्तर्गत रखा है। इसके लिए मेरे सामने मुख्य आधार रहा, A. Danilou का ग्रन्थ Hindu Polytheism, Routledge & Kegan Paul, London, 1964 । लेखक ने इस ग्रन्थ में प्रत्येक अध्याय के क्रम से पहले से अंतिम अध्याय तक एक ही क्रम संख्या रखी। अर्थात् द्वितीय, तृतीय आदि में पुनः क्रम संख्या 1 से नहीं निर्धारित की। मैंने भी इसी पद्धति का अनुसरण किया है।
मूल व्यतिरिक्त उप अनुसंगी प्रमाण (Secondary Authorities) प्रत्येक पृष्ठ के नीचे दिए हैं। वे प्रथम बार पूरी ग्रन्थ सूचना (Bibliography) के साथ उल्लेख किए गए हैं।
जैन आगमों के मूल सन्दर्भ में मुख्य रूप से जैन विश्वभारती तथा जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रकाशन, लाडनूं के संस्करण ही उपयोग में लिए हैं, अतः टिप्पण में तद्-तद् आगमों के सन्दर्भो को इसी प्रकाशन का जाना जाए। जहाँ कहीं अन्य आगमों के प्रकाशन उपयोग में लिए हैं, उनके आगे उनका उल्लेख किया गया है। आगमिक व्याख्या साहित्य के लिए नियुक्ति संग्रह भद्रबाहुस्वामीकृत, श्री हर्षपुष्पामृत कर्पूरसूरि, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, शांतिपुरी, सौराष्ट्र, 1989, जम्बूविजय जी द्वारा संपादित आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र भद्रबाहु विरचित नियुक्ति तथा शीलांकाचार्य विरचित वृत्ति (टीका), मोतीलाल बनारसीदास, इण्डोलॉजिकल ट्रस्ट, दिल्ली, 1978 तथा सूत्रकृतांग की मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित, नियुक्ति तथा चूर्णि सहित, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, अहमदाबाद, 1975 और सुदर्शनलालजी महाराज द्वारा संपादित सूत्रकृतांग की शीलांक वृत्ति, श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी स्वाध्याय संघ, गुलाबपुरा, 1999 उपयोग में लिए गये। विशेषावश्यक भाष्य के मूल सन्दर्भ में दिव्यदर्शन कार्यालय अहमदाबाद, 1962 तथा लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या