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भूमिका
प्रारम्भिक विकास की साधारण विवेचना की है। द्वितीय भाग में शांकर वेदान्त सम्प्रदाय (प्रथम भाग से क्रमशः), योग वाशिष्ठ दर्शन, चिकित्सा की विभिन्न शाखाओं का विवेचन तथा भगवद् गीता दर्शन की सामान्य चर्चा है । तृतीय भाग में भास्कराचार्य सम्प्रदाय, पंचरात्र मत, आलवार, विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय का ऐतिहासिक एवं साहित्यिक सर्वेक्षण, यामुनाचार्य का दर्शन, रामानुज सम्प्रदाय का दर्शन, निम्बार्क - सम्प्रदाय की दर्शन प्रणाली, विज्ञान भिक्षु का दर्शन, कुछ पौराणिक दार्शनिक विचार के साथ परिशिष्ट में लोकायत या नास्तिक मत चार्वाक की संक्षिप्त विवेचना की है। चतुर्थ - पंचम भाग में भागवत पुराण, मध्व और उनका सम्प्रदाय तथा दर्शन, द्वैतवादियों और अद्वैतवादियों के मध्य विवाद, वल्लभ दर्शन, चैतन्य सम्प्रदाय के अनुयायी और उनका दर्शन, दक्षिणी शैव मत साहित्य, वीर शैव मत, श्रीकंठ दर्शन, पुराणों में शैव दर्शन और इस दर्शन के प्रमुख महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सामान्य उल्लेख है । इसमें जहां कहीं सम्बन्धित विषय प्राप्त हुआ उसका यथासंभव उपयोग लिया गया। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर द्वारा प्रथम बार 1978 में भारतीय दर्शन का इतिहास नाम से प्रकाशित हुआ ।
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सर्वपल्ली राधाकृष्णन् का Indian Philosopy, जो London से 1923 में प्रकाशित हुई। यह ग्रन्थ दो खण्डों में विभाजित है । प्रथम खण्ड के पहले भाग में वैदिक काल की सामान्य विचार-धाराओं का विवेचन है, जिससे ऋग्वेद की ऋचाएँ तथा उपनिषद् दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन है । द्वितीय भाग में महाकाव्य काल और उसका दर्शन, भगवद्गीता का आस्तिकवाद तथा जैन और बौद्ध की तथा द्वितीय खण्ड में न्यायशास्त्र का इतिहास और दर्शन, वैशेषिक का परमाणु-विषयक अनेकवाद और उसका दर्शन, सांख्य तथा पातंजल दर्शन, पूर्व मीमांसा, वेदान्त सूत्र, शंकर का अद्वैत वेदान्त, रामानुज का ईश्वरवाद, शैव, शाक्त तथा परवर्ती वैष्णव ईश्वरवाद की समीक्षात्मक विवेचना है । इस ग्रन्थ का भी हिन्दी अनुदित संस्करण, राजपाल एण्ड सन्स द्वारा 1989 में भारतीय दर्शन के नाम से प्रकाश में आया ।
लगभग एक ही समय में प्रकाशित इन दोनों ग्रंथों में लेखक द्वय ने सम्पूर्ण भारतीय दार्शनिक विचार एवं विचारकों का इतिहास तथा उनकी आस्थाएँ, मान्यताएँ और साहित्य का विद्वतापूर्ण मूल्यांकन किया है।