Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
..
अकारादि-अवलेह
..
(४५)
औषधियों के चूर्ण से मिश्री ४ गुनी, गुड २ गुना और क्वाथादि द्रव पदार्थ ४ गुने लेने चाहिये।
प्रथम धी, तेल आदि स्नेहों को कढ़ाई में चढ़ाकर गर्म करना चाहिये और यदि आमले का कल्क, पेठा आदि स्नेह में भूनने योग्य पदार्थ हों तो उन्हें भी इसी समय भून लेना चाहिये, फिर जब कल्कादि भुन जाएं तो उनमें क्वाथादि द्रव पदार्थ और चीनी गुड़ आदि मिला कर. पकाना चाहिये। जब चाशनी तैयार हो जाय और उसमें तार छूटने लगे तो प्रक्षेप द्रव्योंका चूर्ण मिलाकर कौंचे आदि से खूब घोटना चाहिये और नीचे उतारकर ठण्डा होने पर शहद मिलाकर मिट्टी या । र, चीनी आदि के चिकने पात्रमें भरकर रख देना चाहिये।
पाक पाक भी अवलेह के समान ही बनाया जाता है परन्तु इतना भेद है कि अवलेह मे इसकी चाशनी कठिन होती है और तैयार होने पर यह जम जाता है परन्तु अवलेह नरम रहता है। . अकारायवलेह प्रकरणम् . गजपीपल, खरैटी और पोखरमूल प्रत्येक १० -१० [१३९] अगस्त्यहरीतकी (बू. नि. र. क्षय.) तोले । हैड़ और इन्द्रजौं को पोटली में बांधे और हरीतकीशतं भद्रयवानामाढकं तथा। बाकी द्रव्यों को मिलाकर अर्धकुटा करके २० सेर पलानि दशमलस्य विंशतिश्च नियोजयेत ॥ पानी में पकाये तथा इसमें पोटली रखदे । जब हैड़ चित्रकः पिप्पलीमूलमपामार्गः शठी तथा।। और इन्द्रजौं उसीज (उबल) जायें तथा क्वाथ तैयार कपिकच्छः शापप्पी भार्गी च गजपिप्पली॥ हो जाय तो उतार लें । इस क्वाथ को छान कर बला पुष्करमूलं च पृथक् द्विपलमात्रया । इसमें उसीजी हुइ हैडों को मिलावे, तथा ४०-४० पचेत्पश्चाढके नीरे यवैःस्विनैः शृतम् नयेत् ॥ तोले घृत और तेल तथा ६। सेर गुड मिलाकर सच्चाभयाशतं दद्यात काथे तस्मिन्विचक्षणः। पकावे । अवलेह सिद्ध होने पर तथा ठंडा होने सर्पिस्तैलाष्टपलकं क्षिपेद्गुडतुला तथा पर मधु और पिप्पली-चूर्ण प्रत्येक २०-२० पक्त्वालेहत्यमानीय सिद्धे शीते पृथक् पृथक् । तोले मिलावे । इसमें से प्रतिदिन २ हैड खावे क्षौद्रं च पिप्पलीचूर्ण दद्यात्कुडवमात्रया ॥
और लेह चाटे तो क्षय, खांसी, ज्वर, श्वास, हरीतकीद्वयं खादेत्तेन लेहेन नित्वशः।
हिक्का, अर्श, अरुचि, पीनस, ग्रहणिरोग और बलीक्षयं कासं ज्वरं श्वासहिकारुिचिपीनसान्॥
पलित का नाश होता है । यह अवलेह रसायन ग्रहणी नाशयेदेष बलीपलितनाशनः ।
| है तथा यल और वर्ण का देने वाला है । इस बलवर्णकरः पुंसामवलेहो रसायनः।
अवलेह का अविष्कार अगस्त मुनिने किया है। विहीतोऽगस्त्यमुनिना सर्वरोगप्रणाशनः ॥ । [१४०] अपराजितोलेहः हैड़ १०० नग, श्रेष्ठ इद्रजौं ४ सेर, दश-
(बं. से. प्र. चि.) मूल १। सेर, चित्रक, पीपलामूल, चिरचिटा, पलार्द्धमरुणायास्तु द्विपले कुटजत्वचः। कर्पूरकचरी, कौंच के बीज, शंखपुष्पी, भारंगी, । केशराजस्य मूलानि कर्व तत्सर्वमेकतः ।।
For Private And Personal Use Only