Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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(ग) मानसिक - ८. परद्रव्य की अभिलाषा, ९. अहितचिन्तन, १०. व्यर्थ आग्रह |
इस प्रकार सभी मनीषियों ने पाप से मुक्त होने का संदेश दिया है।
आध्यात्मिक शक्ति
आज का मानव भौतिक विज्ञान की शक्ति से न्यूनाधिक रूप में भलीभांति परिचित है। विज्ञान की शक्ति से मानव आकाश में पक्षी की भांति उड़ान भर रहा है, मछली की भांति अनन्त जलराशि पर तैर रहा है और द्रुत गति से भूमि पर दौड़ रहा है। टेलीफोन, टेलीविजन, रेडियो आदि के आविष्कार से विश्व सिमट गया है। अणु बम न्यूट्रोन बम और विविध प्रकार की गैसों के आविष्कार से विश्व को विज्ञान ने विनाश की भूमिका पर भी पहुँचा दिया है। पर अतीत काल में भौतिक अनुसंधान का अभाव था । उस समय आध्यात्मिक साधना के द्वारा उन साधकों ने वह अपूर्व शक्ति अर्जित की थी जिससे वे किसी के अन्तर्मानस के विचारों को जान सकते थे, विविध • रूपों का सृजन कर सकते थे। जंघाचारण, विद्याचारण लब्धियों से अनन्त आकाश को कुछ ही क्षणों में नाप लेते थे। भगवतीसूत्र में इस प्रकार की आध्यात्मिक शक्तियों को उजागर करने वाले अनेक प्रसंग आये हैं।
भगवतीसूत्र शतक ३, उद्देशक ५ में एक प्रसंग है— गणधर गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा कि क श्रमण विराट्का स्त्री का रूप बना सकता है ? यदि बना सकता है तो कितनी स्त्रियों का रूप बना सकता है ? भगवान् ने कहा—वैक्रियलब्धिधारी श्रमण में इतना अधिक सामर्थ्य है कि वह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को स्त्रियों के रूपों से भर सकता है, पर निर्माण करने की शक्ति होने पर भी वह इस प्रकार स्त्रियों का निर्माण नहीं
करता ।
भगवतीसूत्र शतक ३, उद्देशक ४ में गौतम ने पूछा—वैक्रियशक्ति का प्रयोग प्रमत्त श्रमण करता है या अप्रमत्त श्रमण करता है ?
भगवान् महावीर ने कहा— वैक्रियलब्धि का प्रयोग प्रमत्त श्रमण करता है, अप्रमत्त श्रमण नहीं करता i शतक ७, उद्देशक ९ में यह भी बताया है कि प्रमत्त श्रमण ही विविध प्रकार के विविध रंग के रूप बना सकता है। वह चाहे जिस रूप में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में परिवर्तन कर सकता है।
भगवतीसूत्र शतक २०, उद्देशक ९ में गौतम की जिज्ञासा पर भगवान् ने कहा— आकाश में गमन करने की शक्ति चारणलब्धि में रही हुई है। वह चारणलब्धि जंघाचारण और विद्याचारण के रूप में दो प्रकार की है। विद्याचारणलब्धि निरन्तर बेले की तपस्या से और पूर्व नामक विद्या से प्राप्त होती है। इस लब्धि में मुनि तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन परिधि वाले जम्बूद्वीप में तीन बार प्रदक्षिणा कर लेता है। जंघाचारणलब्धि तीन-तीन उपवास की निरन्तर साधना करने पर प्राप्त होती है और इस लब्धि की शक्ति से तीन बार चुटकी बजाये इतने समय में इक्कीस बार जम्बूद्वीप की प्रदक्षिणा कर लेता है। इस द्रुत गति के सामने आधुनिक युग के राकेट की गति भी कितनी कम है !
इसी तरह अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान के द्वारा अन्तर्मानस में रहे हुए विचारों को साधक किस प्रकार जानता है ? शतक ३, उद्देशक ४ तथा शतक १४, उद्देशक १०; शतक ५, उद्देशक ४ आदि में इस विषय का विस्तार से निरूपण है । आध्यात्मिक शक्ति जब जाग जाती है तब हस्तामलकवत् चाहे रूपी पदार्थ हो या अरूपी पदार्थ हो, उसे वह सहज ही जान लेता है। उससे कोई भी वस्तु छिपी नहीं रह पाती ।
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