Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३१०
स्थानाङ्गसूत्रे ___ "चत्तारि मेहा " इत्यादि-स्पष्टम् , नवरम्-एको मेघः क्षेत्रवर्षीक्षेत्रेधान्याद्युत्पत्तिस्थाने वर्षतीत्येचं शीलः क्षेत्रवर्षी भवति किंतु नो अक्षेत्रवर्षी क्षेत्रभिन्नप्रदेशे वर्षणकारी न भवति इति प्रथमः १। तथा-एकः अक्षेत्रवर्षी न तु क्षेत्रवर्षी ति द्वितीयः २। तथा-एकः क्षेत्राक्षेत्र वर्षी ति तृतीयः ३, एको नो क्षेत्रवर्षी नो अक्षेत्रवर्षी ति चतुर्थः ।४। (९)
' एवमेव ' इत्यादि-एवमेव पुरुषजातानि चबारि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-एकः पुरुषः क्षेत्रवर्षी-क्षेत्रे-पात्रे वर्षति-दानश्रुतादिनिक्षिपतीत्येवंशीलस्तथा भवति, नहीं होता है २ तथा कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो काल अकाल दोनों अवसरों पर बरसनेवाला होता है ३ तथा कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो न कालघर्षी होता है और न अकालवर्षी होता है ४ (८) ।
फिरभी--" चत्तारि मेहा" इत्यादि-मेघ चार प्रकारके होते हैं जैसा-कोई एक मेघ ऐसा होता है जो क्षेत्रमें-धान्यादि उत्पत्तिके स्थानभूत खेतमें वर्षी-वरसनेके स्वभाववाला होता है अक्षेत्रवर्षी नहीं होता है, क्षेत्रसे भिन्न प्रदेशमें बरसनेके स्वभाववाला नहीं होता है १ तथा कोई एक मेघ ऐसा होता है जो अक्षेत्रवर्षी होता है. क्षेत्रवर्षी नहीं होता है २ तथा कोई एक मेघ ऐसा होता है जो क्षेत्र और अक्षेत्र इन दोनों में वरसनेके स्वभाववाला होता है ३। तथा कोई एक मेघ ऐसा होता है जो क्षेत्र और अक्षेत्र इन दोनों में भी बरसने के स्वभाव वाला नहीं होता है (४) ९ इसी प्रकारसे पुरुष भी चार प्रकारके कहे गये हैं-जैसे कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो क्षेत्रवर्षी होता है क्षेत्रमें-पात्रमें दान, श्रुत आदिका निक्षेपण कर. કરનાર હોતે નથી. (૩) કોઈ પુરુષ એ હોય છે કે જે કાલવષ પણ હોય છે અને અકાલવષ પણ હોય છે (૪) કોઈ પુરુષ એ હોય છે કે જે કાલવષ પણ હોતો નથી અને અકાલવષ પણ હોતું નથી. ૮
" चत्तारि मेहा" त्याहि-वना नीचे प्रमाणे यार प्रा२। ५ ॥ છે-કેઈ મેઘ એ હોય છે કે જે ક્ષેત્રમાં-ધાન્યાદિ ઉત્પન કરનારાં ખેતરેમાં વરસનારે હોય છે, પણ અક્ષેત્રમાં–વેરાન-પ્રદેશમાં વરસના હેત નથી. (૨) કઈ મેઘ અક્ષેત્રવર્ષ હોય છે પણ ક્ષેત્રવષી હેતું નથી. (૩) કઈ મેઘ ક્ષેત્રપષી પણ હોય છે અને અક્ષેત્રવષ પણ હોય છે. (૪) કઈ મેઘ ક્ષેત્રવષી પણ હોતું નથી અને અક્ષેત્રવષી પણ હેત નથી છેલ્લા
मेरी प्रमाणे पुरुषना ५५] नाय प्रमाणे यार ४१२ ४ा छ-(१) કેઈ એક પુરુષ ક્ષેત્રવવી હોય છે પણ અક્ષેત્રવવી હોતો નથી. એટલે કે
श्री. स्थानांग सूत्र :03