Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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स्थानागसूत्रे ___ 'चत्तारि कडा' इत्यादि-कटाश्चत्वारः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - शुम्बकट:शुम्बः-तृणविशेषः, तनिर्मितः कटस्तथा १, विदलकटः-वंशखण्डनिर्मितकटः २, चर्मकटः-चर्मकृतकटः-चर्ममयरज्ज्जुव्यूतमञ्चकादिः ३, कम्बलकटः-कम्बल एवकटः ४। (३२)।
" एयामेव चत्तारि पुरिसजाया” इत्यादि-एवमेय-कट्यदेव पुरुषजातानि चत्वारि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-गुम्बकटसमान:-शुम्बकटो यथा-ऽल्पबन्धो भवति तथा यः पुरुषो गुर्वादिष्वल्पप्रतिबन्धः स्वल्पपतिकूलव्यापारेणाविगमात् स शुम्बकटकोंके विषय में क्रमशः शीघ्र रूपसे मन्द रूपसे मन्दनररूपसे और मन्दतम रूपले स्नेहका छेदन करनेवाले होते हैं वे असिपत्रादिके समान होते हैं ४ ३१॥ ___"चत्तारि कडा" इत्यादि-कट चार प्रकारके कहे गये हैं जैसेशुम्बकट १ विदलकट २ चर्मकट ३ और कम्बलकट ४ तृण विशेषोंसे जो कट चटाई बनाया जाता है वह शुम्बकट है, बंशकी पंचोंसे जो कर बनाया जाता है वह बिदलकट है, चमडेकी रज्जुसे या तांतोसे बुना गया जो मंचक आदि होता है वह चर्मकट है और जो कम्बल है यह कम्बलकटहै। इसी प्रकारसे पुरुष चार होते हैं, जिसका प्रतिबन्ध गुर्यादिकोंमें अल्प होता है, जैसा कि तृणविशेषोंसे बनी हुई चट्टाईका होता है, वह थोडीसी भी प्रतिकूलतामें शिथिल हो जाता है खुल जाता है ऐसा वह पुरुष शुम्बकट समान होता है शुम्बकट की अपेक्षा विदल. कटका बन्ध दृढ होता है यह थोड़ी सी प्रतिकूलतामें शिथिल ढीला नहीं
અથવા જે માણસ ગુરુ આદિના ઉપદેશથી ક્રમશઃ શીધ્ર રૂપે, મન્દ રૂપે, મન્દતર રૂપે અને મન્દતમ રૂપે સનેહપાશનું છેદન કરનારો હોય છે તેને અનુકમે અસિપત્ર, કરપત્ર, સુરપત્ર અને કદમ્બચીરિક પત્ર સમાન કહે છે. ૩૧
" चत्तारि कडा" या या२ प्रा२नी ४डी छ-(यट्टाछन भाटे मी '४' शण्४ पाप छ ) (१) शुभम४८-तृणविशेषानी महथी २ या मना. વવામાં આવે છે તેને “શુમ્બકટ” કહે છે (૨) વિદલકટ-વાંસની ચીપમાંથી मनायसी याने 'विस' ४ छ. (3) यम ४८-यामानी हारीने थान मनावटी यहाछन 'य ' ४३ छ (४) अने 'मत'-अन माहिनी भजन ' मत ४' ४ छ.
એજ પ્રમાણે પુરુષના પણ ચાર પ્રકાર કહ્યા છે-(૧) શમ્બકટ સમાન પુરુષજેમ તૃણવિશેષમાંથી બનાવેલી ચટ્ટાઈગેડી પ્રતિકૂળતામાં પણ શિથિલ થઈ જાય છે તેના તંતુએ છૂટા પડી જાય છે એ જ પ્રમાણે ગુરુ આદિ પ્રત્યે
श्री स्थानां। सूत्र :03