Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 579
________________ सुधा टीका स्था०५४०१ २०१२ पञ्च विग्रहस्थानादिनिरूपणम् ५६३ ग्लानशैक्षवैयारत्यं नो सम्यक् अभ्युत्थात् भवति ४, आचार्योपाध्याय गणे अनापृच्छयचारि चापि भवति नो आपृच्छयवारि ५। आचार्योपाध्यायस्य खलु गणे पञ्च अव्युद्ग्रहस्थानानि, तद्यथा-आचार्योपाध्यायं गणे आज्ञा वा धारणां वा सम्यक् प्रयोक्त भवति १, एवं यधारानिकतया सभ्यक् कृतिकमें प्रयोक्त भवति २, आचार्योपाध्यायं खलु गणे यानि श्रुतपर्यवजातानि धारयति तानि काले काले सम्यक् अनुप्रवाचयित भवति ३, आचार्योपाध्यायं गणे ग्लानशैक्षवैयावृत्यं सम्यक् अभ्युत्थात् भवति ४, आचार्योपाध्यायं गणे आपृच्छय. चारिचापि भवति नो अनापृच्छयचारि ५ ॥१० १२॥ टीका-'आयरिय उवज्झायस्स' इत्यादि-- आचापिाध्यायस्य-आचार्यश्च उपाध्यायश्व-आचार्योपाध्याय, समाहारद्वन्द्वः, तस्य आचार्यस्य उपाध्यायस्य च खलु निश्चयेन पञ्च व्युद्ग्रहस्थानानि-विग्रहस्थानानि कलहोत्पादकानि प्रज्ञप्तानि । तद्यथा-तान्याह-आचार्योपाध्यायम्-आचार्य उपाध्यायश्च पृथक पृथक् समुदितो वा गणेगणविषये आज्ञाम्-'हे मुने! भवतेदं विधेयम्' इत्येवं रूपाम् , यद्वा-देशान्तरस्थ गीतार्थनिवेदनाय अगीतार्थस्याग्रे गीतार्थों गूढाथैपदैर्यदतिचारनिवेदनं करोति सा आज्ञा, तां तथाभूतामाज्ञाम् , वा=अथवा धारणाम्-' नेदं विधेयम् ' इति रूपाम् , असकृदालोचनादानेन ___ आचार्य और उपाध्यायके गणमें जैसे पांच व्युद्ग्रह (क्लेश)के स्थान होते हैं वैसे ही पांच अव्युद्ग्रह के भी स्थान होते हैं, इसी बातको अब सूत्रकार कहते हैं-'आयरिय उवज्झायस्सणं गणसि'इत्यादि सूत्र १२।। टीकार्थ-यहां आचार्य और उपाध्यायमें समाहारद्वन्द्व समास है, इन आचार्य और उपाध्यायके गणमें पांच व्युद्ग्रह स्थान विग्रहके स्थान कलहको उत्पगकरनेवाले कारण कहे गयेहैं, उनमें प्रथम कारण-"आचार्योपाध्यायं खलु गणे आज्ञां वा धारणां वा नो सम्यक प्रयोक्त भवति આચાર્ય અને ઉપાધ્યાયના ગણમાં યુગ્રહના (કલેશન) જેમ પાંચ સ્થાન હોય છે, એ જ પ્રમાણે અબુદુગ્રહના (અકેલેશના) પણ પાંચ સ્થાન હોય છે, એ જ વાતને હવે સૂત્રકાર પ્રકટ કરે છે. --" आयरिय उवज्झायस्स गं गणंसि" त्याहઆચાર્ય ઉપાધ્યાય અહી સમાહાર દ્વન્દ્રસમાસ રૂપે વપરાયેલ છે. આચાર્ય અને ઉપાધ્યાયના ગણમાં પાંચ વ્યુહૂંગ્રહસ્થાન એટલે કે કલહ ઉત્પન્ન કરનારા કારણે કહ્યાં છે. તેમાંનું પહેલું કારણ નીચે પ્રમાણે છે – " आचर्योपाध्यायं खलु गणे आज्ञा वा धारणां वा नो सम्यक् प्रयोक्तृ भवति " श्री.स्थानांगसूत्र:03

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